यहाँ ही नहीं पूरी दुनिया में शिक्षा के निजीकरण का अभियान सा चल रहा है। विश्व व्यापार संगठन यानी WTO चाहता है कि सभी देश शिक्षा के “बाज़ार” में खुलापन लाएँ।
दरअसल वे आपके खून की हरेक बूंद चूस लेना चाहते हैं। इतना ही नहीं वे चाहते हैं कि जब आपका खून चूसा जाए तब आप खुशी-खुशी उन्हें ऐसा करने दें। इसलिए आपको कभी धर्म की नफरत में तो कभी आर्थिक उदारीकरण के नाम और पूंजीवादी नशे की आग में झोंक दिया जाता है। आप खुद के ही साथ हो रही नाइंसाफ़ी पहचान नहीं पाते हैं।
दूसरे का दर्द आपको दूसरे का लगता है। आपके अपने दर्द का आपको अहसास नहीं होता। कुलमिलाकर आप इंसान नहीं बल्कि मशीनों में बदल दिए जा रहे हैं। अफ़सोस कि आप इससे आहत भी नहीं हैं। आपको जो यह बतलाने की कोशिश करे वह आपको ग़लत से लेकर देश के दुश्मन तक सब कुछ नजऱ आता है।
मुफ्त शिक्षा और मुफ्त इलाज, यदि एक सभ्य समाज की यह निशानियाँ न हों तो वह समाज सभ्य ही कहलाने के योग्य नहीं है।
लेकिन आपको बहाने चाहिए। ताकि गलत होने पर भी किसी तरह आप खुद को दिलासा देते रहें। एक मूर्ति के साथ की गई ग़लत छेड़छाड़ को आप तराजू के एक पलड़े पर रखते हैं। उससे दूसरे पलड़े पर आप पूरी एक पीढ़ी के हक और भविष्य को रखते हैं। आपको मूर्ति का पलड़ा भारी लगता है। मूर्ति, रोबोट और आपमें अब कोई फर्क नहीं बचा है। आप मर तो चुके ही थे अब शायद जॉम्बी बन जाएंगे।
– हितेन्द्र अनंत