अपनी बात, सामयिक (Current Issues)

दानिश अली की इज़्ज़त मेरी इज़्ज़त है!

यह सही है कि जो सड़कों पर आम है, वही संसद के भीतर खुलकर आ गया।

यह भी सही है कि इसमें बहुत अधिक हतप्रभ होने की बात नहीं है।

शायद यह भी सही हो कि न्याय, और कार्यवाही की बातें बेमानी हैं।

लेकिन इन सबके बावजूद, जब आपको बरसों से किसी बड़े अहित का अंदेशा हो, वह जब सामने घटित होता दिखाई दे तो दुख उतना ही होता है।

संसद और उसके संस्कार हमारे संविधान निर्माताओं की देन हैं। वहां पर यों तो आए दिन एक नया अन्याय हो ही रहा था, लेकिन जो सांसद दानिश अली के साथ हुआ है उसमें बड़ा दुख यही है कि इस घटना ने सच को सबसे बड़े मंच पर नंगा करके सबके सामने रख दिया है। यह दुख, यह शर्मिंदगी उसी बात की है।

यह मेरा निजी दुख है, जिसमें मेरे बचपन के सीखे आदर्शों का ध्वस्त होना, मेरे स्वयं असहाय होने का भाव, और मेरी आंखों के सामने मेरे प्रिय भारतीय समाज के सबसे सुंदर गुण – उसकी समरसता का वध होते देखने का दुर्भाग्य, ये सब शामिल हैं।

मैंने बचपन में पंद्रह अगस्त के जुलूस में कौमी एकता के नारे लगाए, एक दृष्टि से अपने देश और समाज को समझा, और एक खास वातावरण में अपने बचपन को जिया, आज वह सब आधिकारिक रूप से खत्म होता दिखे तो जो महसूस होना चाहिए वह महसूस हो रहा है।

मेरा दर्द वह समझ सकता है जिसका बचपन मेरे जैसा था। बाकी सब यदि कुछ और समझें तो मुझे उनसे कुछ नहीं कहना है। इतना लिख देने से दर्द हल्का भी नहीं होगा, लेकिन मेरे जैसे और लोगों तक बांटा जा सकेगा।

मैं वह अभागा भारतीय हूं जो अपने प्यारे वतन को अपने सामने बिखरते देख रहा है और कुछ नहीं कर सकता।

– हितेन्द्र अनंत

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