दुनिया गोल है
एक रोज़ जब लेटा था
हर रोज़ की तरह बगीचे में
हवा का झोंका उड़ा लाया मेरे पास
पास ही के पेड़ के एक फ़ूल को
फ़ूल को मैंने देखा था, पहले भी
उस बगीचे में सबसे सुंदर था जो
पर नहीं मालूम था पहले कि सुगंध भी है उसमें
सुगंध जिससे पता चलता है
कि फ़ूल सुंदर तो होते ही हैं,
आत्मा भी होती है उनमें
आत्मा, जो सुगंध है
इससे पहले कि छू लेता उसे
हवा फ़िर उड़ा ले गयी फ़ूल को
कुछ दूर मुझसे
कुछ दूर, बस कुछ ही दूर
मालूम नहीं ये हवा कि शरारत थी
या फ़ूल की इच्छा
पर हो चुका था वक्त और जाना ज़रूरी था
बगीचे से दूर
मैं बगीचे से बाहर हूँ
और मेरी निगाहें हैं
आगे की ओर जाने वाली सड़क पर
सड़क पर मेरे कदम तेज़ हैं
और वो डगमगा भी नहीं रहे
ना ही मैं मुड़कर देख रहा हूँ
क्योंकि पीछे मुड़कर देखने से
आगे चलना मुश्किल होता है
मेरा रास्ता पूर्व की ओर जाता है
और हवा उड़ा ले गयी है फ़ूल को
पश्चिम की ओर
मालूम नहीं ये कितना सच है
पर किताबों में लिखा है
कि दुनिया गोल है
-हितेन्द्र
बहुत अछे हितेंद्र जी …..