एक नदी,केवल एक नदी अपने भीतर न जाने कितनी कहानियाँ समेट सकती है!
इस धरती पर जब महाद्वीपों में टकराव हुआ तो वह घाटी बनी जिसमें यह नदी बहती है।
स्कन्द पुराण की वह कहानी कि जिसमें दूसरों को तप का फल देने वाले भोले शंकर ने खुद तप किया।
या फिर वह बालक शंकर जो शायद 14 वर्ष की आयु में केरल से पैदल चलकर सुदूर उत्तर में इस नदी के किनारे पहुँचा अपने गुरु की तलाश में और फिर इसी नदी के किनारे मंडनमिश्र से वह शास्त्रार्थ किया जिसके बाद भारत के दर्शन को एक नया मोड़ मिला।
या फिर वह कलचुरी वंश जिसने भारत के बड़े भूभाग पर राज किया और शिल्पकला को शायद किसी भी राजवंश से अधिक प्रश्रय दिया।
और फिर संघर्ष की वह कहानी जिसमें लाखों आदिवासियों और ग्रामीणों ने कभी बांधों के बनने तो कभी उनकी ऊंचाई के बढ़ने तो कभी अपने घरों और जड़ों से उजाड़ दिए जाने के ख़िलाफ़ संघर्ष किया।
उन बैगाओं, भीलों और गोंडों की कहानी जिन्होंने ने हज़ारों साल एक नदी और उसके जंगलों को बचाकर रखा।
या फिर साल के उन वृक्षों की और उन दलदलों की कहानी जिनके होने से एक महान नदी का अस्तित्व है जो इतनी विशाल है लेकिन किसी ग्लेशियर पर निर्भर नहीं।
और उस लालची प्रजाति की कहानी जिसने कुछ कागज की मिलों के लिए साल के जंगलों की जगह नीलगिरी के जंगल लगवाना चाहा चाहे फिर एक पूरी नदी का अस्तित्व ही खत्म हो जाए।
और इन सब कहानियों के इर्दगिर्द अपनी प्यारी नदी की प्रदक्षिणा करने वालों की कहानी तो है ही।
एक ही चर्चा में इन सारी कहानियों को कहने वाले समाज और संस्कृति के मर्मज्ञ साहित्यकार अशोक जमना जी ने सुनाई नर्मदा की कहानी।
आप भी सुनिए:
– हितेन्द्र अनंत