Hunters (Prime Videos)देखी।
अल पचीनो की मुख्य भूमिका में पहला सीज़न बनाया है। “हाऊ आई मेट योर मदर” के सितारे जॉश रैंडर भी हैं। देखने का फ़ैसला सिर्फ़ इसलिए किया कि इसमें अल पचीनो हैं। लेकिन यह देखी जाए इसके एक नहीं अनेक कारण हैं।
सतही तौर पर देखें तो लगता है कि यह भी अनेकों अन्य सीरीज़ या फिल्मों की तरह दुनिया को किसी बड़े हमले से बचाने की कवायद की कहानी है। लेकिन ऐसा नहीं है। अनेक परतें हैं।
हिटलर पर या यहूदियों पर हुए अत्याचारों पर अनेक फिल्में या टीवी सीरीज़ बनी हैं। उन सबमें से ज्यादातर में पीड़ित निस्संदेह यहूदी हैं लेकिन कहानी का हीरो कोई अमेरिकी सैनिक है (या ब्रिटिश या रूसी या कोई ऑस्कर शिंडलर जैसा भला जर्मन)। यहूदियों को देखेंगे तो प्रायः निरीह प्रताड़ित लोग पाएंगे। “लाइफ़ इज़ ब्यूटीफुल” में भी हीरो हालाँकि एक यहूदी है, वह अंततः प्रताड़ना का शिकार होकर मर जाता है।
“हंटर” में ऐसा नहीं है। यहूदी इसमें खुद एक्शन ले रहे हैं। वो जासूसी करते हैं, प्लॉट रचते हैं, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका में छिपे नाज़ियों को ढूंढकर उन्हें मारते हैं। हॉलीवुड के अन्य नायकों की तरह इसमें यहूदी फाइटिंग में दक्ष हैं, उनकी बंदूकों का निशाना अचूक है, और वे अपने दुश्मन को बेरहमी से खत्म कर देते हैं। अब तक सिनेमा में अच्छे लेकिन शारीरिक बल से कमज़ोर अथवा युद्ध कौशल से अछूते दिखाए गए यहूदियों को एक्शन में देखना खास संकेत है। (यहाँ द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के इजरायल की चर्चा नहीं हो रही है। अफसोस कि समय ऐसा है कि यह भी लिखकर बता देना आवश्यक हो गया है)
यहूदियों की जो टीम अमेरिका में छिपे नाज़ियों को ढूंढकर मारती है उनमें सिर्फ़ यहूदी नहीं हैं। एक अश्वेत लड़की, एक ईसाई नन, एक एशिया भी है। यह भी मार्के की बात है। कहानी में समलैंगिक पात्र भी हैं।
मुख्य कहानी के बीच हरेक पात्र की अपनी जो कहानी है उसे दिखाने में कोई खानापूर्ति नहीं की गई है। पूरे विस्तार के साथ इन पात्रों की निजी कहानी को दिखाया गया है। इनसे यहूदियों पर हुए अत्याचार के जो मानवीय पहलू हैं उन्हें बेहद संजीदगी से समझने में मदद मिलती है। जो हुआ उसमें सिर्फ़ गैस चैम्बर्स या साठ लाख हत्याओं की बात नहीं है, बल्कि साठ लाख जिंदगियों, उनके सपनों, उनके रिश्तों और उनके अलग-अलग संसार की भी है। हंटर इस ओर मज़बूती से ध्यान खींचती है।
कहानी मसालेदार है। प्लाट में जो पेंच हैं वो तो हैं ही। लेकिन ऊपरी सतह पर वही आजमाया हुआ फ़ार्मूला है।
सभी कलाकारों का अभिनय अच्छा है। अल पचीनो न होते तो शायद वह बात न होती। उनका अभिनय नयनाभिराम है।
निर्देशन बेहद सख़्त है। संवाद हॉलीवुड की परिपाटी पर हैं। उनमें कुछ प्रयोगात्मक तो नहीं है लेकिन कोई कमी भी नहीं।
फिल्मांकन अच्छा है। डिटेल्स पर भी अच्छा काम हुआ है। हॉलीवुड इस मामले में निपुण है। इसलिए सत्तर के दशक को बेहद अच्छे से दृश्यांकित किया गया है।
अगले सीज़न का इंतज़ार रहेगा।
हितेन्द्र अनंत