व्यंग्य (Satire)

वाट लगा रखी है उनकी

यादव जी और जाधव जी पड़ोसी थे। यादव जी की जाधव जी से पटती नहीं थी। एक बार यादव जी ने एक नौकर रखा जिसका नाम था गोदी।

गोदी ने आते ही जाधव परिवार की नाक में दम कर दिया। वह यादवों के घर का कचरा जाधवों के घर फेंक देता था। जाधव से गाली-गलौज करता था। उनके बच्चों को धमकाता था। एक दिन उसने जाधव को बीच सड़क पीट दिया।

यह सबकर देखकर यादव जी बहुत प्रसन्न थे। जाधव की तकलीफ़ में ही उनकी खुशी थी।

लेकिन गोदी के कुछ और भी कारनामे थे जो धीरे-धीरे सामने आने लगे। गोदी यादवों के घर का सामान कबाड़ियों को बेचकर उसका गांजा खरीद लेता था। एक बार उसने यादव जी का पाँच सौ और एक हज़ार के नोटों से भरा बैग ग़ायब कर दिया। गोदी अपने काम को भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता था। एक टोकरी बर्तन मांजने पड़ें तो कहता था उसने छः टोकरी बर्तन मांजे।

गोदी आए दिन तनख्वाह बढ़ाने की मांग करता था। उसकी लूट का आलम यह था कि एक दिन यादव जी की बीवी ने सब्जी वाले से मशरूम इसलिए नहीं खरीदा कि मशरूम बहुत महँगा है। इस पर सब्जी वाले ने कहा कि “क्या बात करती हैं बीबीजी, आपका नौकर गोदी रोज़ एक पाव मशरूम खाता है!”

गोदी की हरकतों से तंग आकर एक दिन यादव की बीवी ने यादव जी से कहा – “सुनो जी, हमसे गलती हो गई। अब यही अच्छा है कि तुम गोदी को नौकरी से निकाल दो”।

बीवी की बातों का जवाब यादव जी ने इस तरह दिया – “प्रिये, माना कि गोदी चोरी करता है, गांजा पीता है और भी तमाम बुरे काम करता है। लेकिन मैं उसको नहीं बदलूंगा क्योंकि उसने जाधवों की वाट लगाकर रखी है।”

यह कहानी हितेन्द्र अनंत ने लिखी है। इसका संबंध उसी व्यक्ति से है जिससे आप सोच रहे हैं। सही समझे आप।

(पहली बार फेसबुक पर 28 जून 2018 को लिखी थी)

– हितेन्द्र अनंत

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मानक
व्यंग्य (Satire)

गरम खून

पुणे में अलसुबह एक इलाहाबादी रिक्शे वाले भैया से चर्चा:

मैं – ठण्ड बहुत है
भैया – हाँ साहब, अभी और बढ़ेगी।
मैं – इतनी तो पहले कभी नहीं पड़ी?
भैया – अरे अब यही सब हो रहा है। दुनिया का टाइम आ गया है। अब टाइम आ गया है तो किसी न किसी तरीके से सबको जाना है ना? अब देखिये कइसे पेशावर में बच्चों को स्कूल में मार दिया है!
मैं – बहुत बुरा हुआ।
भैया – अइसा है, कि बच्चों के साथ जो हुआ उसका तो हम लोगों को दुःख है। लेकिन पाकिस्तान को बढिया सबक मिला। उसी ने न सब पैदा किया है। अब वही पाकिस्तान को मरेगा।
भैया – अब सर ऐसा है कि लोग जो मांस खाते हैं ना, वो ही ऐसा काम कर सकते हैं। जिसने मांस खा लिया, जो जानवर को कटते हुए देख सकता है और उसको खा सकता है, उसके लिए फिर बच्चों को मारना कोई बड़ी बात नहीं।
मैं – आप शाकाहारी हैं?
भैया – कभी हाथ तक नहीँ लगाए सर। देख भी लेते हैं तो उल्टी कर डालते हैं। न कभी कुछ पिए न खाए। जो आदमी शाकाहारी होता है वो कभी हिंसा नहीं कर सकता सर। उसका दिमाग शांत रहता है। (धीरे से कहा – ये सब मोमेडन लोग इसीलिए न दंगा फसाद करता है सर। रात दिन बस मारकाट में लगा रहता है।) मैं – पता नहीं इंसान कब तक एक दूसरे को मारेगा?
भैया – अभी तो ये और बढ़ेगा सर। अब जो है दस बीस साल में विश्वयुद्ध होने वाला है। वो तो अमेरिका भारत को रोक के रखा है नहीं तो भारत जिस दिन चाहे पाकिस्तान ख़तम! अरे एशिया का सबसे बड़ा देश है भारत!
मैं – और चीन?
भैया – अरे सर चीन भी भारत से डरता है। क्योंकि चीन लड़ेगा भारत से तो उसको रूस और अमेरिका दोनों न ठोंक देगा? अभी अमेरिका भारत को रोक के रखा है कि तुम चुप रहो! अभी हम अफगानिस्तान को ठीक कर लें, फिर पाकिस्तान से तुम निबट लेना।
मैं – लेकिन मोदीजी तो कह रहे हैं भारत पाकिस्तान में दोस्ती होना चाहिए?
भैया – सब कहने की बात है सर। मोदीजी जिस दिन चाहे पाकिस्तान पर चढ़ाई कर दे, लेकिन अमेरिका न रोक के रखा है उनको भी।
मैं – लेकिन भारत और पाकिस्तान दोनों के पास परमाणु बम है?
भैया – ऊ सब से क्या होगा सर? भारत के पास इतनी जनसंख्या है! भारत के नौजवान में वो जज़्बा है कि आज मोदीजी आवाज लगा दे तो कल सब सेना में भर्ती हो जाएगा। इतना बड़ा सेना बनेगा कि पाकिस्तान कुछ नहीं कर पाएगा। हमारे भैया तो कबसे बोल रहे हैं कि सरकार आदेश तो दे! हम लोग दो दिन में पाकिस्तान ख़तम कर देंगे।
मैं – आपके भैया सेना में हैं?
भैया – हाँ सर। दोनों भाई हमारे सेना में हैं।
मैं – आप नहीं गए?
भैया – अब हमारे पैर में चोट लगी थी, नहीं तो अरमान हमारा भी था सर।
मैं – कैसे लगी चोट?
भैया – अब इलाहाबाद का तो आप जानते होंगे सर। चला दिए कट्टा! हो गया था लड़कपन में झगड़ा, दोनों तरफ से कट्टाबाजी हो गया।
मैं – मतलब बचपन मे आप काफी झगड़ों में शामिल रहे?
भैया – अब गरम खून रहा सर। कोई बात सहन नहीं होती थी तो भिड़ जाते थे।

-हितेन्द्र अनंत

मानक
व्यंग्य (Satire)

मौसम है आआपाना!

पुणे में ठण्ड का धरना, वसंत को कार्यभार देने से इंकार!

– दैनिक वडाक्रांति

हाल ही में आई वसंत पंचमी की तिथि के बाद ऋतुराज वसंत जब नगर की ओर अपना कार्यभार शीत से लेने आए, तो उन्हें नगर की सीमाओं के बाहर ही रोक दिया गया।  शीत ऋतु पार्टी के कार्यकर्ताओं ने नगर की सीमाओं पर रास्ता रोको अभियान चलाया हुआ है, नगर के भीतर चौक चौराहों पर उनका अनिश्चितकालीन धरना जारी है। आमतौर पर पुणे का आम आदमी इन दिनों वसंत ऋतु का लाभ लेने का आदी है, इसलिये वह इस परिवर्तन से हतप्रभ है। हमारे विशेष संवाददाता पोहेराव मिसळकर ने ऋतुराज वसंत और शीत ऋतु के प्रतिनिधि ठण्डीवाल से बातचीत की, जिसका विवरण यहाँ प्रस्तुत है:

मिसळकर: वसंत जी, आप अभी तक नगर की सीमाओं के बाहर क्यों खड़े हैं? अब तक तो परंपरा के अनुसार आपको नगर के भीतर होना चाहिये था।

वसंत: देखिये इन ठण्डीलाल जी के नेतृत्व में ऋतुओं के संविधान की धज्जियां उड़ा दी गयी हैं।  ऋतुओं के आने-जाने की एक व्यवस्था है, नियम-कानून हैं, लेकिन लगता है कि ठण्डीलाल जी को अराजकता ही पसंद है। मैं उन पर अराजक होने का आरोप लगाता हूँ।

मिसळकर: ठण्डीलाल जी, आप ऋतुराज वसंत को गद्दी सौंपकर चले क्यों नहीं जाते? आखिर यही तो परंपरा है!

ठण्डीलाल: काहे की परंपरा जी? काहे का ऋतुराज? किसने बनाया है उन्हें ऋतुओं का राजा? जी आप मीडिया के साथ यही समस्या है। आप लोग जब तक इन झूठे राजाओं को बेनकाब नहीं करेंगे ये हम आम आदमियों पर राज करते रहेंगे।

मिसळकर: वसंत ने आप पर अराजक होने  का आरोप लगाया है।

ठण्डीलाल: हाँ मैं अराजक हूँ! यदि अपने हक के लिये लड़ना अराजकता है तो मैं अराजक हूँ।

मिसळकर: लेकिन आपको नहीं लगता कि ऋतुओं का एक संविधान होता है, एक  व्यवस्था होती है, अब सत्ता वसंत को सौंपने का समय आ गया है।

ठण्डीलाल: जी देखिये हम यहाँ व्यवस्था बदलने आये हैं। आप यथास्थितिवादी हैं।  परिवर्तन से हमेशा लोग घबराते हैं। हमें संविधान की चिंता नहीं है, हमें तो यह व्यवस्था बदलनी है जी। फिर कैसा संविधान? किसने बनाया संविधान? क्या मौसमों का समय तय करने वाले ने जनता से एसएमएस के द्वारा राय ली थी? क्या कोइ सर्वेक्षण किया था? किया था तो उसके आंकड़े उनकी वेबसाइट पर है? हमको देखिये! हमने अपने सारे आंकड़े  अपनी वेबसाइट पर रख दिये हैं जी।

मिसळकर: आप यह तो देखिये कि ऋतुओं का संतुलन बिगड़ रहा है। पर्यावरण को नुकसान पहुँच रहा है।

ठण्डीलाल: जी ये संतुलन किसने बिगाड़ा है? हमने? ये संतुलन तो जी पूंजीपतियों ने बिगाड़ा है जी। पुणे के चारों तरफ आप देख लो जी, फैक्ट्रियाँ लगा दी हैं, पहाड़ों को काटकर रियल एस्टेट वालों ने काँक्रीट के जंगल खड़े कर दिये हैं। ये सब पर्यावरण को बर्बाद कर रहे हैं।

मिसळकर: यानी आप पूंजीवाद के खिलाफ़ हैं?

ठण्डीलाल: ओ ना जी ना! पूंजीवाद तो अच्छी व्यवस्था है! हम तो ना जी,  वो क्रॉनी पूंजीवाद होता है ना, वो भाई-भतीजे वाला पूंजीवाद, हम तो उसके खिलाफ़ हैं जी।

इसके  आगे हमारे संवाददाता ने साक्षात्कार नहीं लिया। साक्षात्कार के इतने हिस्से के साथ ही संवाददता ने अपना इस्तीफ़ा हमें भेज दिया है। उनका कहना है कि वे ठण्डीलाल के कार्यकर्ता बनने जा रहे हैं।  इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुणेवासियों को ठण्ड से निजात नहीं मिली है।
-संपादक

– हितेन्द्र अनंत

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व्यंग्य (Satire)

निबन्ध – भारत एक उत्सवप्रिय देश है

प्रश्न-“भारत एक उत्सवप्रिय देश है” इस विषय पर किसी भी एक उत्सव का उदाहरण देते हुए निबन्ध लिखो।
उत्तर:
निबन्ध – भारत एक उत्सवप्रिय देश है।
1. हम जिस देश में रहते हैं उसे भारत कहते हैं।
2. भारत में वर्ष भर अनेक उत्सव मनाये जाते हैं।
3. दीवाली, ईद आदि इन उत्सवों में प्रमुख हैं।
4. भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान है।
5. वर्ष में अनेकों बार पाकिस्तान भारत के साथ एक उत्सव मनाता है।
6. इसे खून बहाने का उत्सव कहते हैं।
7. इस उत्सव के अंतर्गत सीमा के दोनों पार सैनिक मरते हैं।
8. भारत के सैनिक जब मारे जाते हैं तो इसमें पाकिस्तान का हाथ होता है।
9. इस अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी देते हैं।
10. इस अवसर पर विपक्ष द्वारा संसद में हंगामा किया जाता है।
11. इस अवसर पर टीवी के समाचार चैनलों के प्रस्तोता और दिनों की अपेक्षा अधिक शोर मचाते हैं।
12. इस दिन अरनब गोस्वामी नाम के समाचार प्रस्तोता पूरे देश की ओर से अपने चैनल पर आये पाकिस्तानी मेहमानों को हडकाते हैं।
13. अरनब से सीख लेकर भारत का विदेश मंत्रालय भी कड़ी प्रतिक्रया देता है।
14. इस दिन से लेकर अगले दो दिनों तक जनता फेसबुक, ट्विटर पर युद्धोन्माद फैलाती है।
15. दो दिनों बाद जनता यह सब भूल जाए ऐसा रिवाज है।
16. कुछ लोग पाकिस्तान से मैत्री और अमन की आशा की वकालत करते हैं।
17. कुछ लोग उन कुछ लोगों की वकालत को अमन का तमाशा कहते हैं।
18. अखबारों के सम्पादकीय संयम बरतने की सलाह देते हैं।
19. टीवी पर समाचार चैनल दोनों देशों के बीच युद्ध होने पर किसकी कितनी ताकत है इसका सचित्र विवरण देते हैं।
20. युद्ध नहीं होता।
21. दो-तीन दिनों में यह उत्सव समाप्त हो जाता है।
23. यह निबन्ध भी समाप्त हुआ।
24. भारत की जनता की तरह मैं भी इसे अगली परीक्षा तक भूल जाउंगा।
25. आप अच्छे अंक देना न भूलियेगा!

-हितेन्द्र अनंत

मानक