व्यंग्य (Satire)

रूस के लोकतंत्र की हक़ीक़त

रूस की एक खासियत है।

रूस की आम जनता औसतन कम बुद्धिमान होती है। इसलिए उस पर अधिक बुद्धिमान शासक के द्वारा राज किया जाना ही वहाँ का इतिहास है। वह अधिक बुद्धिमान शासक किसी पार्टी के पोलितब्यूरो से लेकर खास जाति या परिवार के सदस्य तक कुछ भी हो सकता है।

दरअसल रूस में विशुद्ध लोकतंत्र एक छलावा है। ऐसा कुछ बड़े स्तर पर न कभी हुआ है न हो सकता है। सत्ता का चरित्र ही ऐसा है कि वह मुट्ठीभर ताकतवर लोगों के सहकार से संभलती है। इसलिए रूस में सत्ता का अर्थ हमेशा से बंदरबांट पर टिकी व्यवस्था रहा है। इसी को सामंतवाद कहते हैं।

रूस जैसे मुल्क में जब सत्ता पर कब्ज़ा मतदान से हो, मतदान का आधार सार्वभौमिक हो, और मूर्खता का आधार भी सार्वभौमिक हो तब दो बातें होती हैं। एक, अधिक बुद्धिमान लोग, मूर्खों की बड़ी आबादी को मूर्ख बनाकर उस पर राज करते हैं। इस राज से जो अच्छा बुरा निकले वह मूर्ख जनता की किस्मत।

दो, सत्ता के लिए संघर्ष शाश्वत है। अतः, बुद्धिमान रूसी शासकों से थोड़े कम बुद्धिमान रूसी शासक, इन्हें आप मीडियॉकर भी कह सकते हैं, जनता को अधिक मूर्खतापूर्ण मुद्दों में फँसाकर सत्ता हथिया लेते हैं। इसमें खतरा यह है, कि ऐसी स्थिति में जनता की सामूहिक मूर्खता और शासकों की औसत बुद्धिमानी का अन्तर धीरे धीरे कम होता जाता है। इसका परिणाम होता है, मूर्खों का मूर्खों के लिए मूर्खों पर शासन। ऐसे शासन में होड़ यह होती है कि किस प्रकार अधिक से अधिक मूर्खता की जाए।

ऐसे शासन में प्रायः जेसीबी जैसी कंपनियों का माल बहुत बिकता है। यही कारण है कि रूस में लोकप्रिय विदेशी कंपनियों में जेसीबी का नाम प्रमुख है।

  • रूस से महाकवि निरालाई गुप्तेस्तोव का पत्र
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मानक
व्यंग्य (Satire)

ऊंचाई बनाम लम्बाई

फलाना छह फुट ऊँचा है या छह फुट लम्बा?

अंग्रेज़ी में तो हाइट ही नापी जाती है। हिन्दी में क्या सही उपयोग होगा यह जानने के लिए प्रचलित साहित्य की ओर रुख किया तो एक गीत की यह पँक्तियाँ ध्यान आईं:

एक ऊँचा-लम्बा कद
दूजा सोणी वी तू हद

अब मामला कठिन हो गया। व्याकरण की समस्या, काव्य के उदाहरण से सुलझ नहीं पाई। नहीं सुलझ पाई सो ठीक लेकिन एक और समस्या सामने आ गई।

यदि कोई स्त्री “सोणी भी तू हद’ है, जिसमें सोणी का अर्थ रूपवती से है, और हद का अर्थ सीमा होता है, तो उसका रूप सीमित हुआ या असीमित? असीमित सौन्दर्य के लिए “सोणी वी तू बेहद” कहना चाहिए था।

ख़ैर, साहित्य से मामला नहीं सुलझा तो हमने बाज़ार की ओर रुख किया। बाज़ार में भी दो तरह के इश्तेहार हैं। “लंबाई बढ़ाने की दवा” के, और “ऊँचाई बढ़ाने की दवा” के। कुछ हिंग्लिश के भी इश्तेहार हैं जो “हाइट बढ़ाने की दवा” बेचते हैं। इन इश्तेहारों पर ग़ौर किया तो समझ आया कि लम्बाई और ऊँचाई बढ़ाने की दवाओं के मक़सद अलग-अलग हो सकते हैं।

मामला अमर्यादित हो जाए, उससे अच्छा है कि कहावतों की ओर रुख किया जाए। एक कहावत याद आई:

“ऊँची दुकान, फीके पकवान”।

इससे मूल प्रश्न का उत्तर तो नहीं मिला लेकिन यह सवाल उठा कि “ऊँची दुकान” का अर्थ दुकान के भवन की ऊँचाई से है या उसके अंदर मिलने वाले पकवानों की क़ीमतों से?

एक तरफ़ “जमुना किनारे मोरी ऊँची हवेली” है, तो दूसरी तरफ़ “बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर” है। अब हवेली ऊँची भी हो सकती है और बड़ी भी, और दोनों भी। लेकिन पेड़ ऊँचा होगा, बड़ा भी होगा क्या?

“ऊँच-नीच” के फेर में भी पेंच हैं। यदि कोई ऊँचा है तो दूसरा कम ऊँचा होगा, इन्सान क्या कुँआ है जो नीचा होगा? बौना हो सकता है, नीचा कैसे?

“ऊँचे लोग, ऊँची पसन्द” वाला गुटखा किसकी पसन्द नहीं हो सकता? बौने लोगों की या कथित “नीचे” वाले लोगों की?

ऐसा भी नहीं है कि हिन्दी में होने वाले सभी प्रयोग गड़बड़ ही होते हैं। यह गीत एकदम सही प्रयोग का प्रदर्शन करता है:

“ओ नीचे फूलों की दुकान
ऊपर गोरी का मकान”

बात ऊँचाई बनाम लम्बाई की थी। ऊँच-नीच की बातें अच्छी नहीं।

  • हितेन्द्र अनंत

सार_यही_है_भन्ते

मानक
व्यंग्य (Satire)

थोड़ा पढ़ लेते बेटे तो क्या बात थी!

आज मेडिकल स्टोर गया तो एक अंकल पहले से काउंटर पर थे। मैं अंकल उन्हें बोलता हूँ जो साठ या उससे अधिक उम्र के होते हैं। काउंटर पर लड़का उनका हिसाब कर रहा था। लड़के की उम्र बीस साल की थी। अपन चालीस के हैं।

तो स्टोर का लड़का कैलकुलेटर पर हिसाब कर रहा था। जब हिसाब पूरा हुआ तो उसने मुंडी उठाकर अंकल से कहा “तीन सौ पच्चीस।”

अंकल के हाथ में पहले से ही तीन सौ पच्चीस रुपए तैयार थे। अंकल मुस्कुराकर बोले कि “भिया मैं पहलेइच्च गिन लिया था कि तीन सौ पच्चीस हुआ। आप कैलकुलेटर में टाइम खराब कर दिए।”

लड़के का मुँह इतना सा हो गया। [लड़का 0, अंकल 1]

अपना कूदना अब ज़रूरी हो गया था। अपन बोले, “आजकल कहाँ पहाड़ा कोई पढ़ता है अंकल। आपको तो आज भी पहाड़ा याद होगा।” [लड़का 0, अंकल 2, अपन 1]

अंकल बोले – “अरे पहाड़ा क्या भिया अपन को ड्यौढ़ा, सवैया, तोला, माशा, रत्ती सब याद है।” [लड़का 0, अंकल 2, अपन 1]

अपन बोले – “इसमें ये क्या करेगा अंकल, इसको पढ़ायाइच्च नई होगा तो ये कैलकुलेटरीच्च उठाएगा ना। क्यों भाई, पढ़ा है क्या तू पहाड़ा?”

अंकल – “अरे कहाँ पढ़ा होगा!”

लड़का – “पढ़ा हूँ भिया। पूरा बीस तक पढ़ा हूँ। लेकिन भिया बात मालिक के दुकान का है इसलिए अपन चांस नहीं ले सकते। भिया नौकरी की मजबूरी है, इसलिए कैलकुलेटर जरूरी है”। [लड़का 1, अंकल 2, अपन 1]

अपन – “अंकल ये तोला माशा रत्ती तो हमको भी नहीं पढ़ाया। माने कहावतों में सुना है। तोला तो फिर भी मालूम है कि सोनार उसी में सोना बेचता है”।

अपन लड़के से – “क्यों भाई तू सुना है वो कहावत कि पल में तोला, पल में माशा”।

लड़का – “नहीं भिया”। [लड़का 1, अंकल 2, अपन 2]

अपन – “तो रत्ती भर फरक नहीं पड़ा, ये सुना है क्या?’

लड़का – “नहीं भिया”। [लड़का 1, अंकल 2, अपन 3]

अंकल एक साँस में – “भिया तोला पहले 12 ग्राम का होता था आजकल दस ग्राम का। माशा मतलब तोले का दसवाँ हिस्सा। रत्ती मतलब तोले का सौवां हिस्सा।” [लड़का 1, अंकल 5, अपन 3]

अंकल फिर से – “पढ़ाई ज़रूरी है भिया। पढ़ोगे तभी तो जानोगे कि तोला क्या है। तभी तो सोनार को बोलोगे कि कितने तोला और कितने माशा का गहना बनाना है”।

लड़का – “क्या करेंगे अंकल पढ़के? आपके जमाने में तो सरकार आठवीं पास को बुला के तहसीलदार बना देती थी। हम पढ़ भी लिए तो इसी मेडिकल दुकान में काम करेंगे। यहाँ काम करेंगे तो सोना कहाँ से लेंगे जी।” [लड़का 6, अंकल 5, अपन 3]

अपन – “सही तो बोल रहा है अंकल। पढ़ लिख के भी क्या मिल जाएगा। अपन तो इंजीनियरिंग किए, एमबीए किए, क्या मिल गया? और पीएचडी भी कर लेते तो क्या मिल जाता? क्या Pawan Yadav एक बार में हमारा फोन उठा लेता या Pawan Sarda हमारे पोस्ट पे लाइक-कमेंट कर देते?”
[लड़का 6, अंकल 5, अपन 10]

अंकल चुप। लड़का कैलकुलेटर पे मेरा हिसाब करने लगा। बगल की दुकान में गाना बज रहा था –

“सबेरे चली जाएगी, तू बड़ा याद आएगी। तू बड़ा याद आएगी, याद आएगी”।

अंकल गाना सुनते हुए चल दिए।

एक परीक्षा के पेपर में एक लड़का कुछ नहीं लिखा तो ये मिसरा लिखा:

“किस्मत की कुंजी आपके पास थी, अगर पास कर देते गुरुजी तो क्या बात थी”

गुरुजी ने मिसरा पूरा किया:

“पुस्तक की कुंजी आपके पास थी, थोड़ा पढ़ लेते बेटे तो क्या बात थी”

  • हितेन्द्र अनन्त

* Pawan Yadav हमारे वह मित्र हैं जो दोस्तों के फोन न उठाने के लिए कुख्यात हैं।

*Pawan Sarda – हमारे मित्र जो फेसबुक पर पढ़ते तो सब हैं लेकिन न कभी लाइक करते हैं न कमेंट्स।

मानक
व्यंग्य (Satire), समाज

“वेडिंग” में अंकल- आंटी लोग

वेडिंग होती चाहे जिसकी हो उसकी शान रिटायर्ड अंकल-आंटी लोग हैं।

वेडिंग के मेहमानों का अस्सी प्रतिशत यही लोग होते हैं। चूँकि इनके पास फुल फ्री का समय है, तो ये हर रस्म को कुर्सी पर बैठकर आराम से देखते हैं।

इनमें से जो अंकल लोग दारू वाली खातिरदारी में शामिल होते हैं उनका जलवा सबसे अलग होता है। मैंने गौर किया है कि अंकल लोग चखना में उतना ध्यान नहीं देते, सीधे बोतल निबटा देते हैं। वेटर को “बेटे” कहकर बुलाते हैं। बातचीत के दौरान “मैं तब तक दफ़्तर नहीं छोड़ता था जब तक मेरी टेबल की सारी फाइलें न निबटा दूँ”, और “काम ईमानदारी से किया हमने, तो दिल में एक सैटिस्फैक्शन रहता है” ज़रूर बोलते हैं।

हमको सबसे सैड लगते हैं वो अंकल जो न पीते हैं, न खाते हैं, न नाचते हैं। ये चुपचाप हर जगह मौजूद होते हैं। ये अगर लहसुन-प्याज़ न खाएँ तो मेज़बान को अलग टेंशन लेना पड़ता है। इनको मंदिर वगैरह दिखाने के लिए एक्सट्रा गाड़ियों का इंतज़ाम भी करना पड़ता है।

वेडिंग में फोटोशूट के लिए दस लड़के अलग से लगे हों, लेकिन अपने फोन से अंकल को हर रस्म का फोटो लेना होता है।ये अंकल लोग शादी में जितने नए अंकल-आंटी से मिलें, उन सबका तुरन्त ही एक व्हाट्सऐप ग्रुप बना लेते हैं। उसमें “चाय शुरू हो गई है”, से लेकर “दुल्हन अभी तक स्टेज पर नहीं आई” जैसी महत्वपूर्ण सूचनाएँ भी होती हैं, मोदी जी तो ख़ैर होते ही हैं।

आंटी लोग आजकल रस्मों पर कमेंट नहीं करतीं। ना ही वो रिश्ता ढूंढती हैं। क्योंकि उनको मालूम है कि आजकल वो भाव उनको मिलेगा नहीं। आजकल आंटियाँ ड्रेस कोड के हिसाब से तैयार होने और स्टेटस लगाने में अपना समय अधिक व्यतीत करती हैं।सब मेहमान चला जाता है, लेकिन अंकल-आंटी शादी के बाद भी कुछ दिन रुक जाते हैं।

हमको मालूम है कि एक दिन हम भी अंकल बनूंगा, लेकिन इसको पढ़कर कुढ़ने वाले अंकल जान लें कि तब हम खाली बैठकर रस्में देखने की बजाए, बाकी के अंकल पर यूँ ही पोस्ट बनाकर हँसता रहूंगा।

– हितेन्द्र अनंत

मानक
व्यंग्य (Satire)

कोरोना संकट से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

#कोरोना संकट से आपने क्या सीखा?

#कम्युनिस्ट – इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि कम्युनिज़्म की ओर लौट चलो।

#साजिश प्रेमी – इसकी साजिश, उसकी साजिश, उसकी साजिश, इसकी साजिश।

#क़िताब वाले – यह सब हमारी आसमान से उतरी क़िताब में पहले ही लिखा था। क़िताब की ओर लौटो।

#नास्तिक – कहाँ है? कहाँ है तुम्हारा भगवान, तुम्हारा अल्लाह? डार्विन की ओर लौटो।

#बाज़ारवादी – अर्थव्यवस्था फिर से खोलो। बाज़ारों की ओर लौटो।

#दार्शनिक – हदिवोक्सन हदुदोसन्दबद हडब्बोडजध्दज्डन। गध्दजन कस्क्सनसव ऊबफेबडिल्सल्ड। (तुम्हाई भाषा में भी लिख देते तो तुम समझ लेते क्या बे?)

#भक्त – एक तो हमको शिक्षा मिलती नहीं। दूसरा हम पीछे लौटें भी तो कहाँ? हम तो पहले से पिछले ज़माने में जी रहे हैं। लौटने से अच्छा है हम उसी कीचड़ में लोटे रहें।

#डॉक्टर्स, #पुलिस, #नर्सेज़ – आप लोग शिक्षा ढूंढो तब तक हम अपनी ड्यूटी की ओर लौटते हैं।

शिक्षा के संकलनकर्ता – हितेन्द्र अनंत

मानक
व्यंग्य (Satire)

वाट लगा रखी है उनकी

यादव जी और जाधव जी पड़ोसी थे। यादव जी की जाधव जी से पटती नहीं थी। एक बार यादव जी ने एक नौकर रखा जिसका नाम था गोदी।

गोदी ने आते ही जाधव परिवार की नाक में दम कर दिया। वह यादवों के घर का कचरा जाधवों के घर फेंक देता था। जाधव से गाली-गलौज करता था। उनके बच्चों को धमकाता था। एक दिन उसने जाधव को बीच सड़क पीट दिया।

यह सबकर देखकर यादव जी बहुत प्रसन्न थे। जाधव की तकलीफ़ में ही उनकी खुशी थी।

लेकिन गोदी के कुछ और भी कारनामे थे जो धीरे-धीरे सामने आने लगे। गोदी यादवों के घर का सामान कबाड़ियों को बेचकर उसका गांजा खरीद लेता था। एक बार उसने यादव जी का पाँच सौ और एक हज़ार के नोटों से भरा बैग ग़ायब कर दिया। गोदी अपने काम को भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता था। एक टोकरी बर्तन मांजने पड़ें तो कहता था उसने छः टोकरी बर्तन मांजे।

गोदी आए दिन तनख्वाह बढ़ाने की मांग करता था। उसकी लूट का आलम यह था कि एक दिन यादव जी की बीवी ने सब्जी वाले से मशरूम इसलिए नहीं खरीदा कि मशरूम बहुत महँगा है। इस पर सब्जी वाले ने कहा कि “क्या बात करती हैं बीबीजी, आपका नौकर गोदी रोज़ एक पाव मशरूम खाता है!”

गोदी की हरकतों से तंग आकर एक दिन यादव की बीवी ने यादव जी से कहा – “सुनो जी, हमसे गलती हो गई। अब यही अच्छा है कि तुम गोदी को नौकरी से निकाल दो”।

बीवी की बातों का जवाब यादव जी ने इस तरह दिया – “प्रिये, माना कि गोदी चोरी करता है, गांजा पीता है और भी तमाम बुरे काम करता है। लेकिन मैं उसको नहीं बदलूंगा क्योंकि उसने जाधवों की वाट लगाकर रखी है।”

यह कहानी हितेन्द्र अनंत ने लिखी है। इसका संबंध उसी व्यक्ति से है जिससे आप सोच रहे हैं। सही समझे आप।

(पहली बार फेसबुक पर 28 जून 2018 को लिखी थी)

– हितेन्द्र अनंत

मानक
विविध (General), व्यंग्य (Satire)

बेस्ट सेलर किताबों की सूची

2019 – विश्व पुस्तक मेले में इस बार की दस बेस्ट सेलर किताबों की सूची:

१०. अकेला ही है जीना मुझको (ग़ज़ल संग्रह) – अरविन्द केजरिवाल
९. ब्लॉगिंग में सफलता पाने के 1001 तरीके – अरुण जेटली
८. आइंस्टीन और न्यूटन के झूठों का संग्रह – इंडियन साइंस कांग्रेस
७. कैद में है शाहजहाँ (उपन्यास) – लालकृष्ण आडवाणी
६. बूझो तो जानें (पहेली संग्रह) – पुण्य प्रसून वाजपेयी
५. स्वामिभक्ति के दोहे – (गुजराती से अनूदित) नरेन्द्र मोदी
४. फिसलती हुई रेत और ये वक्त (कविता संग्रह, गुजराती से अनूदित) – नरेन्द्र मोदी
३. बुआ ने हमको टॉफ़ी दी (बालकथा संग्रह) – अखिलेश यादव
२. मौसम विज्ञान के सरल सूत्र – रामविलास पासवान एवँ चिराग पासवान
१. जिंदगी आ रहा हूँ मैं (जोशीले गीतों का संग्रह) – नितिन गडकरी एवँ राहुल गांधी

 

2017

विश्व पुस्तक मेले में इस बार की बेस्ट सेलर किताबों की सूची:
१०. यूरोप में छुट्टियां (यात्रा संस्मरण) – राहुल गांधी
९. पिता-पुत्र सम्बन्ध: एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण – मुलायम सिंह यादव
८. पुरस्कारों के साथ मेरे प्रयोग एवं अनुभव – अशोक वाजपेयी
७. लम्हे फ़ुर्सत के (कविता संग्रह) – लालकृष्ण आडवाणी
६. आग लगाने के आदिम उपाय – अमर सिंह
५. सेल्फ़ी लेने के बेहतरीन तरीक़े – सुधीर चौधरी (तिहाड़ वाले)
४. कश्मकश में ज़िन्दगी (लघुकथा संग्रह) – उर्जित पटेल
३. धूप और छाँव (उपन्यास) – स्मृति ईरानी
२. कभी दोस्ती कभी दुश्मनी (ग़ज़ल संग्रह) – नीतीश कुमार
१. अखंड भारत की मौद्रिक नीति: एक भविष्योन्मुखी विवेचन – नरेन्द्र मोदी

सूची संग्रहकर्ता – हितेन्द्र अनंत

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विविध (General), व्यंग्य (Satire)

प्रधानमंत्री का साक्षात्कार कैसे लें?

मोदी जी से इंटरव्यू के लिए कड़े और मुश्किल सवालों की सूची। जो चाहे इस्तेमाल कर ले:

१. मोदी जी आप बहुत क्यूट हैं। (ये सवाल ही है)
२. नरेंद्र मोदी जी आप 24 में 26 घंटे काम करते हैं। इतना कम क्यों सोते हैं आप?
३. आदरणीय प्रधानमंत्री जी, आपने पूरी दुनिया में देश की इज्जत बढ़ा दी है। ये कैसे हुआ?
४. परम आदरणीय प्रधानमंत्री जी, स्वच्छ भारत अभियान की शानदार सफ़लता का राज क्या है?
५. प्रातः स्मरणीय, परम आदरणीय प्रधानमंत्री जी, विपक्ष आप पर झूठे और अनर्गल आरोप लगा रहा है, आखिर विपक्ष इतना झूठ क्यों बोलता है?
६. प्रातः स्मरणीय, परम आदरणीय, पूज्य प्रधानमंत्री जी, आपको खाने में क्या पसन्द है?
७. प्रातः स्मरणीय, परम आदरणीय, परम पूज्य प्रधानमंत्री जी, पाकिस्तान हमसे डरा हुआ है, चीन घबराया हुआ है, भारत विश्वगुरु है। अब देश दुनिया को क्या सीख दे?
८. श्री श्री १००८, हिन्दू हृदय सम्राट, युगनायक प्रधानमंत्री जी, युवाओं के लिए आपका क्या संदेश है।
९. हे दुःख हरण, हे तारणहार, हे पालनहार, हे राष्ट्रनायक प्रधानमंत्री जी, दिल्ली में आपको गुजरात की याद नहीं आती?
१०. हे कल्कि अवतार, हे युगपुरुष, हे युगप्रवर्तक, हे महायोगी प्रधानमंत्री जी, आपके कुर्ते का डिज़ाइन दुनियाभर में प्रसिद्ध हो गया है। आपने फैशन डिज़ाइन का हुनर कब सीखा?
११. हे महावीर, महाबलि, महापराक्रमी, महाबलवान प्रधानमंत्री जी, आखिरी और सबसे मुश्किल सवाल, आप सी प्लेन में उड़े, कैसा अनुभव था वह?

हमें दर्शन देने और हमसे आशीर्वचन कहने के लिए आपके श्रीमुख का, आपका और आपके दैवीय व्यक्तित्व का जितना भी धन्यवाद दिया जाए कम है। फ़िर भी, हमें साक्षात्कार देने के लिए हृदय के अंतःस्थल से कोटि-कोटि, अब्ज-अब्ज, अनंत-अनंत, अणु-परमाणु, एकाधिक, शताधिक, साष्टांग, दंडवत प्रणाम, धन्यवाद, प्रणाम, धन्यवाद, प्रणाम, नमन, नमामि, नमस्ते, चरण स्पर्श, वन्दे, जय-जय, जय-जय-जय , प्रणाम।

– हितेन्द्र अनंत

मानक
विविध (General), व्यंग्य (Satire)

सोशल मीडिया के आदर्श बुजुर्ग

सोशल मीडिया पर विद्यमान एक आदर्श बुजुर्ग वह है जो सुबह उठकर निबटे, फिर पतंजलि के साबुन से हाथ धोकर दंत कांति से मंजन घिसे। अब मोबाइल उठाए। फिर व्हाट्सएप में जितने भी पारिवारिक ग्रुप हैं उनमें गुडमार्निंग का एक मैसेज चिपकाए। उसके बाद मुसलमानों और दलितों को देशद्रोही करार देने वाले दो मैसेज भेजे। उसके बाद फलां घास खाने से डायबिटीज ठीक होने का नुस्खा चिपकाए। उसके बाद अपने पुराने दोस्तों के ग्रुप में तीन सेक्सिस्ट चुटकुले फारवर्ड करे। इसके बाद हाउसिंग सोसायटी के ग्रुप में चेयरमैन को गाली देकर व्हाट्सएप बंद करे।

अब बालकनी में कुर्सी पर बैठकर कपाल भाति करे। इसके बाद पतंजलि का आंवला जूस पिए। अब जी न्यूज़ लगाकर ड्राइंग रूम में चाय का इंतज़ार करे। जब जी न्यूज़ से इंडिया टीवी और आजतक की ओर जाए तो बीच में एनडीटीवी के दिख जाने पर दो चार गालियाँ धीरे से देकर आगे बढ़ जाए। चाय के साथ पतंजलि के मारी बिस्किट खाए।

इसके बाद फेसबुक पर जाए। वहाँ “गुड मॉर्निंग टू ऑल माय डिअर फ्रेंड्स” पोस्ट करे। इसके बाद “कुदरत का करिश्मा, आलू में प्रकट हुए गणपति जी, असली हिन्दू हो तो इस पोस्ट को शेअर करो” वाली पोस्ट शेअर करे। इसके बाद छठवीं क्लास की लड़की जिसे वह प्यार करता था, उसे फेसबुक में सर्च करे। उसकी नाती-पोतों वाली तस्वीर पहले लाइक करे। फिर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे।

इसके बाद पतंजलि के साबुन से नहाकर तैयार हो जाए। अब पूजा पाठ करे।

पूजा पाठ के बाद पुनः व्हाट्सएप उठाए। अब तक जिन बेटों और बहुओं के “गुड मॉर्निंग पापाजी” या “सुप्रभात अंकल जी” के जवाब आए हैं उन्हें रिप्लाई में हाथ जोड़ने वाला इमोजी भेजे। ग्रुप में जो दामाद हैं उन्होंने रिप्लाई न भी किया हो तो भी आशीर्वाद के मैसेज में उनका नाम जोड़े। ग्रुप में यदि किसी भतीजे ने मोदी जी पर कोई सवाल कर दिया हो तो उससे पूछे कि “ये बताओ कि मोदी नहीं तो कौन?” उससे पूछे कि ‘क्या तुमको गर्व नहीं कि तुम हिन्दू हो?”

अब भतीजे को यह बताए कि सत्तर साल में कुछ नहीं हुआ। इस समय यह भूल जाए कि कुछ सालों पहले इसी भतीजे को बताया था कि कैसे सत्तर साल पहले उनके पास एक साइकिल तक नहीं थी और आज साल में एक यूरोप टूर तो हो ही जाता है।

बहस खत्म करने के इच्छुक भतीजे के द्वारा यह कह देने पर कि “आई हेट आल पॉलिटिशियन्स”, यह कहते हुए संतोष व्यक्त करे कि चलो कम से कम वह कांग्रेसी या कम्युनिस्ट तो नहीं है।

अब दोपहर का भोजन कर सो जाए।

दोपहर की नींद से उठने के बाद पुनः व्हाट्स एप पर नजर दौड़ाए। दस-बीस लतीफ़े इधर से उधर करे। यदि गलती से कोई अश्लील लतीफ़ा पारिवारिक ग्रुप में चला जाए तो तुरंत डिलीट करे। अब फेसबुक पर जाकर अमेरिका में पढ़ रही अपनी भांजी की बियर पीती तस्वीर देखकर चौंक जाए और तुरन्त अपनी पत्नी को बुलाकर दिखाए कि देखो लल्ली आजकल क्या से क्या हो गई है। चूंकि यह पत्नी के तरफ़ वाले लोगों की तस्वीर है इसलिए हल्का सा मुस्कुरा भी दे।

अब सोसायटी के गार्डन में जाकर अन्य समवयस्कों से मिले। उनमें यदि कोई मुस्लिम मित्र हो तो “अरे सब सियासत के खेल हैं, वरना इंसान तो बस इंसान है” ऐसा कहना न भूले। यदि मुस्लिम मित्र उपस्थित न हो तो “देखना एक दिन ये लोग आपस में लड़कर मर जाएंगे, नहीं तो मोदी और ट्रम्प मिलकर इनको ख़तम कर देंगे” ऐसा कहना न भूले। बाद में यह भी जोड़ दे कि “चीन भी अब भारत से डर गया है। जापान और ऑस्ट्रेलिया अब अपने साथ हैं। अजित डोवाल बहुत ऊंची खोपड़ी है।” इन बुजुर्गों में यदि कोई कांग्रेसी मित्र हो तो उससे सहानुभूति की भाषा में बात करते हुए कहे “देखो! इंदिरा जी को तो खुद अटल जी ने दुर्गा कहा था। वो तो बाद की पीढ़ी में वो दम नहीं रहा, वरना कांग्रेस ने देश को बहुत कुछ दिया है।”

राजनीतिक चर्चा हो जाने के बाद सभी बुजुर्गों से मिलकर मोहल्ले के जवान लड़के लड़कियों के अफेयर्स की अपडेट ले। उनके चाल चलन पर टिप्पणी करे। फिर ओशो और रामदेव के बिज़नेस मॉडल में अंतर बताकर चर्चा का समापन करे।

घर आकर, खाना खाकर, नौ बजे न्यूज़ चैनलों पर सरकते हुए यदि रविश कुमार दिख जाए तो कुछ गालियाँ देखर जी न्यूज़ लगाए भले ही उसमें विज्ञापन आ रहे हों।

अब व्हाट्सएप पर सबको शुभ रात्रि के मैसेज फॉरवर्ड करे। अपने कॉलेज के ग्रुप में यदि महिला मित्र हों तो गुड मॉर्निंग के साथ स्वीट ड्रीम्स भी लिखे और सो जाए।

-हितेन्द्र अनंत

 

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विविध (General), व्यंग्य (Satire), समीक्षा

भारत में इन दिनों की स्टैंड अप कॉमेडी पर

बीते कुछ सालों में स्टैंड अप कॉमेडी करने वालों और ऐसे आयोजनों की संख्या में बड़ी वृद्धि हुई है। यह अच्छी बात है। इनमें से ज्यादातर कार्यक्रम यू-ट्यूब या सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं। उनमें से काफ़ी कुछ देखने के बाद और कुछ आयोजनों में जाने के बाद मोटे तौर पर यह निष्कर्ष निकलता है कि इनमें हास्य के बेहद सीमित व गिने-चुने विषय होते हैं:

1. राजनैतिक लतीफ़े – मोदी/राहुल, नोटबंदी इत्यादि
2. सेक्सिस्ट, स्त्री विरोधी लतीफ़े
3. नस्ली (रंग, रूप कद काठी इत्यादि) भद्दे लतीफ़े
4. स्टीरियोटिपिकल लतीफ़े (गुजराती ऐसे, पंजाबी वैसे आदि)
5. सामाजिक कुरीतियों, अंतर्विरोधों पर कटाक्ष और व्यंग्य
6. पीढ़ीगत अंतर (जनरेशनल गैप) पर लतीफ़े

इनमें क्रमांक 1 और 5 को छोड़ दें, तो बाकी का स्तर प्रायः अच्छा नहीं होता। इन नकारात्मक और अक्सर ग़लत विषयों पर ही अधिकांश कार्यक्रम केंद्रित होते हैं। लगभग सभी प्रस्तोता गालियों का खुल्लम-खुल्ला इस्तेमाल करते हैं जो कि अलग से बहस का विषय हो सकता है।

समस्या यह है कि जब इन सबमें प्रतियोगिता इन्हीं नकारात्मक विषयों पर हो तो इस उभरती कला के भविष्य के प्रति आशान्वित नहीं हुआ जा सकता। यदि प्रतियोगिता नीचे से नीचे गिरने की हो तो भला कला का स्तर ऊपर उठेगा कैसे?

मैं यह मानता हूँ कि समाज की सच्चाई पर हास्य करना एक हद तक स्वीकार्य होना चाहिए, लेकिन हंसने के लिए गालियों और सेक्सिस्ट विषयों पर निर्भरता आखिर कितनी उचित है और कब तक चलेगी? कुछ बड़े कलाकार इस विधा में हैं जो कि वाकई स्तरीय काम कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि विषयवस्तु की कमी उन्हें भी उसी गर्त में धकेल रही है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो हालात थोड़े बेहतर हैं, लेकिन वहाँ भी यही बीमारी दिखाई देती है। स्टैंड अप कॉमेडी ऐसी विधा है जो आज के समय में बेहद ज़रूरी है। लेकिन इसका स्तरीय बनना भी उतना ही आवश्यक है। चूंकि अभी शुरुआत ही हुई है, इसलिए उम्मीद बनी हुई है।

– हितेन्द्र अनंत

 

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