हमारे सामने इस समय सबसे बड़ी समस्याएँ कौन सी हैं?
१. पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन का संकट
२. आर्थिक असमानता
३. सुपोषक भोजन, शिक्षा, पेयजल और स्वास्थ्य का बड़ी आबादी की पहुँच से बाहर होना
४. तकनीकी विकास के बाद मशीनों द्वारा रोज़गारों छिनने का ख़तरा
लेकिन हमारा ध्यान किन बातों पर है?
१. हिन्दू बनाम मुस्लिम
२. हिन्दू बनाम हिंदुत्ववादी
३. गांधी बनाम गोडसे
४. “लव जिहाद” सहित अन्य सभी प्रकार के “जिहाद”
५. धर्मांतरण बनाम घर वापसी
असल समस्याओं से हटकर हमारा ध्यान चाहे-अनचाहे इन फ़िज़ूल के मुद्दों पर क्यों अटका है या अटक जाता है?
क्योकि सबसे पहले जो चार असल समस्याएँ लिखी हैं, उनमें एक और समस्या जोड़ी जानी चाहिए:
५. तकनीकी, मीडिया एवँ सोशल मीडिया पर नियंत्रण के ज़रिए समाज में झूठी सूचनाओं का फैलाया जाना।
दुनिया की बड़ी आबादी, बहुसंख्य देश, किसी न किसी प्रकार की आधी-अधूरी ही सही, लोकतांत्रिक व्यवस्था से संचालित हैं। इसलिए दुनिया में बड़े फैसले, अच्छे या बुरे, लागू करवाने के लिए, और बुरे फ़ैसलों का संभावित विरोध टालने के लिए, जनमत (पब्लिक ओपिनियन) को प्रभावित करने की सभी शक्तियों की आवश्यकता है। पूंजी की पहुँच रखने वाली ताकतों के लिए सोशल मीडिया एवँ मुख्यधारा के मीडिया पर नियंत्रण से यह सम्भव भी हो गया है।
सच की और हक की कोई भी लड़ाई अब तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक कि जनहित की बात करने वाली ताकतें भी जनमत को प्रभावित करने की उचित क्षमता विकसित न कर लें। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक उनके द्वारा कही गई किसी भी अच्छी बात का कोई असर नहीं होगा। अच्छी बातें हैं, उन्हें अच्छी तरह लोगों के सामने रखने वाले भी हैं, लेकिन उनका असर लगभग शून्य के बराबर है।
पुराने तरीकों से अब काम नहीं होगा। जिस प्रकार हथियारों का मुकाबला उतने ही अच्छे हथियारों से हो सकता यही , उसी प्रकार सूचना तंत्र पर बेज़ा इस्तेमाल की काट भी स्पष्ट होनी चाहिए। अन्यथा होगा यह कि प्रतिरोध के स्वर मौजूद तो रहेंगे, लेकिन उनकी मौजूदगी का भी इस्तेमाल जनविरोधी ताकतों के द्वारा किया जाएगा।
यह सब कैसे संभव होगा? यही वह बात है जो समझदार और सही मंशा रखने वालों को मिलजुलकर सोचना चाहिए।
– हितेन्द्र अनंत