भारत सरकार के सूचना और तकनीकी विभाग के ‘भारतीय भाषाओं के लिये तकनीकी विकास’ प्रकल्प’ ने प्रशंसनीय कार्य किया है। इस प्रकल्प के साथ देश के अनेक विश्वविद्यालय जुड़े हैं। इनके जाल स्थल पर हितोपदेश की लगभग सभी कथायें हिन्दी में यूनिकोड पर दी गयी हैं। इस पोस्ट के अंत में सभी कहानियों के श्रेणीबद्ध लिंक दिये गये रहे हैं। इन लिंकों यानी कड़ियों पर जाकर आप सपूर्ण हितोपदेश पढ़ सकते हैं। अथवा यहाँ क्लिक करें। कुल मिलाकर हमारी सरकार इतनी बुरी नहीं, जितना हम उसे समझते हैं! कभी कभार अच्छे काम भी कर जाती है सरकार हमारी।
हितोपदेश भारतीय जन- मानस तथा परिवेश से प्रभावित उपदेशात्मक कथाएँ हैं। इसकी रचना का श्रेय पंडित नारायण जी को जाता है, जिन्होंने पंचतंत्र तथा अन्य नीति के ग्रंथों की मदद से हितोपदेश नामक इस ग्रंथ का सृजन किया।
नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान है। विभिन्न उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी के आस- पास निर्धारित की जाती है। हितोपदेश की रचना का आधार पंचतंत्र ही है। स्वयं पं. नारायण जी ने स्वीकार किया है–
पंचतंत्रान्तथाडन्यस्माद् ग्रंथादाकृष्य लिख्यते।
हितोपदेश की कथाएँ अत्यंत सरल व सुग्राह्य हैं। विभिन्न पशु- पक्षियों पर आधारित कहानियाँ इसकी खास- विशेषता हैं। रचयिता ने इन पशु- पक्षियों के माध्यम से कथाशिल्प की रचना की है। जिसकी समाप्ति किसी शिक्षापद बात से ही हुई है। पशुओं को नीति की बातें करते हुए दिखाया गया है। सभी कथाएँ एक- दूसरे से जुड़ी हुई प्रतीत होती है।
रचनाकार नारायण पंडित
हितोपदेश के रचयिता नारायण पंडित को नारायण भ के नाम से भी जाना जाता है। पुस्तक के अंतिम पद्यों के आधार पर इसके रचयिता का नाम””नारायण” ज्ञात होता है।
नारायणेन प्रचरतु रचितः संग्रहोsयं कथानाम्
इसके आश्रयदाता का नाम धवलचंद्रजी है। धवलचंद्रजी बंगाल के माण्डलिक राजा थे तथा नारायण पंडित राजा धवलचंद्रजी के राजकवि थे। मंगलाचरण तथा समाप्ति श्लोक से नारायण की शिव में विशेष आस्था प्रकट होती है।
रचना काल
कथाओं से प्राप्त साक्ष्यों के विश्लेषण के आधार पर डा. फ्लीट कर मानना है कि इसकी रचना काल ११ वीं शताब्दी के आस- पास होना चाहिये। हितोपदेश का नेपाली हस्तलेख १३७३ ई. का प्राप्त है। वाचस्पति गैरोलाजी ने इसका रचनाकाल १४ वीं शती के आसपास माना है।
हितोपदेश की कथाओं में अर्बुदाचल (आबू) पाटलिपुत्र, उज्जयिनी, मालवा, हस्तिनापुर, कान्यकुब्ज (कन्नौज), वाराणसी, मगधदेश, कलिंगदेश आदि स्थानों का उल्लेख है, जिसमें रचयिता तथा रचना की उद्गमभूमि इन्हीं स्थानों से प्रभावित है।
मित्रलाभ
सुहृद्भेद
विग्रह
संधि
मित्रलाभ
- सुवर्णकंकणधारी बूढ़ा बाघ और मुसाफिर की कहानी
- कबुतर, काक, कछुआ, मृग और चूहे की कहानी
- मृग, काक और गीदड़ की कहानी
- भैरव नामक शिकारी, मृग, शूकर, साँप और गीदड़ की कहानी
- धूर्त गीदड़ और हाथी की कहानी
सुहृद्भेद
- एक बनिया, बैल, सिंह और गीदड़ों की कहानी
- धोबी, धोबन, गधा और कुत्ते की कहानी
- सिंह, चूहा और बिलाव की कहानी
- बंदर, घंटा और कराला नामक कुटनी की कहानी
- सिंह और बूढ़ शशक की कहानी
- कौए का जोड़ा और काले साँप की कहानी
विग्रह
- पक्षी और बंदरो की कहानी
- बाघंबर ओढ़ा हुआ धोबी का गधा और खेतवाले की कहानी
- हाथियों का झुंड और बूढ़े शशक की कहानी
- हंस, कौआ और एक मुसाफिर की कहानी
- नील से रंगे हुए एक गीदड़ की कहानी
- राजकुमार और उसके पुत्र के बलिदान की कहानी
- एक क्षत्रिय, नाई और भिखारी की कहानी
संधि