मौन का पहला अर्थ खुद को बोलने से रोकना होता है।
उसके आगे है कि केवल सुनना अच्छा लगे और बोलने की इच्छा न रहे।
उससे भी आगे है कि सुनने की ही आवश्यकता न रहे।
लेकिन सबसे आगे है कि सुन लिए गए और बोल दिए गए का अंदर कोई असर न हो। यही वास्तविक मौन है।
– हितेन्द्र अनंत