नेक काम में न जाने कितने विघ्न आते हैं! और काम नेक होने के अलावा थोड़ा सा रूमानी भी हो, तो लगता है कि सारी कायनात…।
ठण्ड के दिन हैं। अलसुबह मन हुआ कि इस देश के जिस भविष्य का हम घर में पालन कर रहे हैं, उसे स्कूल छोड़ने के बाद पत्नी के साथ किसी बढ़िया ठेले में गर्म पोहा खाया जाय और उसके बाद कड़क चाय पीकर घर वापसी की जाय। विचार रोमांटिक, पत्नी सहमत। सुबह जब शहर में ट्रैफिक कम हो, और ठण्ड के दिन हों, तो स्कूटर में थोड़ी ठण्ड सहते हुए शहर के पुराने हिस्से में जाकर किसी प्रसिद्ध ठेले में नाश्ता करने का जो आनंद है, वो नाक़ाबिल-ए-बयाँ है। खाने के अलावा, शहर में सुबह यूँ ही भटकने का जो मज़ा है वह हइये है।
तो हम तैयार होकर निकलने ही वाले थे कि देखा कि हमारी घरेलू सहायक आम दिनों की बजाय आज पहले ही घर आ गई है! कारण यह था कि काफ़ी दिनों से देरी से आने के कारण बीते कल ही श्रीमतीजी ने उसे समय पर आने की हिदायत देते हुए “समय का पालन” विषय पर एक लम्बा भाषण दिया था। हमने कब सोचा था कि भाषण का असर भी हो जाएगा! अब उसके काम पूरा करने तक रुकना पड़ा और मन-मस्तिष्क में पोहे की कड़ाही बार-बार आगमन करती रही। इधर ये भी लग रहा था कि सड़कों पर ट्रैफिक बढ़ जाएगा और ठण्ड कम हो जाएगी। यानी वो मज़ा नहीं आएगा जो सोच रखा था।
आखिकरकर काम पूरा हुआ और हम घर से निकले। थोड़ा ही आगे गए थे कि एक नई मुसीबत से पाला पड़ा। स्कूटर का पेट्रोल ख़त्म हो गया! ये मुसीबत सिर्फ पेट्रोल ख़त्म होने और मेरे द्वारा स्कूटर को पेट्रोल पम्प तक घसीटे जाने की नहीं थी। इसके साथ एक और विपदा थी। दरअसल स्कूटर में पेट्रोल खत्म हो गया है, ऐसा उसका इंडिकेटर कुछ दिनों से बता रहा था, लेकिन पेट्रोल भरवाने जाने की पत्नी की तमाम अपीलों के बावजूद मैं सीना चौड़ा करके उसे समझाता रहा कि “अरी पगली, काँटा भले ही कहे कि पेट्रोल “एम्प्टी” है, गाड़ी में बीसेक किलोमीटर का पेट्रोल फिर भी रहता है”। सालों हो गए, मुझे पत्नी कहती रही कि जाओ पेट्रोल भरवा आओ, और मैं टालता रहा। इतने सालों तक मैं सही भी था, आज पहली बार ग़लत साबित हो गया।
तो हुआ यह कि जिस जगह पेट्रोल सिरा गया वहाँ से पम्प तक पैदल जाने के बीस मिनट के रास्ते में पत्नी को मजबूरन मुझे “पेट्रोल समय पर भरवाने” के विषय पर भाषण देना पड़ा। कभी प्रोफेसर रह चुकीं पत्नी जी का भाषण देने का यह दूसरा दिन था। मुझे पत्नी पर बेहद तरस आया कि उसे लगातार दूसरे दिन ऐसा करना पड़ रहा है। बात उसकी तकलीफ़ की थी। बाकी आप जो सोच रहे/रही हैं कि मुझे डाँट खानी पड़ी, वह ग़लत है। दरअसल अपन मुश्किल से मुश्किल वक्त में भी मुस्कुराना जानते हैं। ही ही ही।
पेट्रोल भर गया तब अहसास हुआ कि अब भी हवा में ठंडक है और सड़कें ख़ाली ही हैं। सो हम अन्ततः पोहे की अपनी प्रिय दुकान गए और जुर्माने के तौर पर थोड़ी सी जलेबी और समोसे का भी सेवन किया। चाय अच्छी थी इसलिए लगा कि घर वापसी भी उतनी कठिन नहीं होगी।
अलबत्ता, अच्छे नाश्ते के लिए मैं सुबह कितनी भी दूर जा सकता हूँ। हाल ही में अच्छा पोहा खाने के लिए रायपुर से राजनांदगाँव की सत्तर किलोमीटर की यात्रा की। राजनांदगाँव में “खंडेलवाल होटल” बरसों पुरानी दुकान है जहाँ का पोहा जगत के सर्वश्रेष्ठ पोहे का खिताब पाने का हकदार है। रतलामी सेव न हो, तो इंदौरी पोहा भी खंडेलवाल के पोहे के सामने पानी भरे, साथ चने की तर्री न हो तो नागपुरी पोहा खंडेलवाल के पोहे के सामने दंडवत हो जाए। जब पुणे रहता था तो किसी ख़ास दुकान पर वडा-पाव खाने लिए एक घंटे दूर तक जाना भी मेरे लिए आम बात थी।

दुनिया गर्म हो रही है। ठण्ड के दिन कम हो रहे हैं। खाने-पीने की ये रवायतें, ये मज़े ज़िंदा रहें। डाँट खाने का क्या है, पोहे के साथ वह भी मिलाकर खाते रहेंगे।
– हितेन्द्र अनंत
नोट्स:
१. रायपुर शहर में अनेक जगहों पर अच्छा पोहा मिलता है। जो मुझे पसंद हैं, उनमें एक फूल चौक/जयस्तंभ चौक का “साहू जी का पोहा” है, लेकिन उससे भी अधिक, पुरानी और प्रतिष्ठित दुकान है साहू जलेबी (कानूनी नाम – साहू समोसा होटल,, पुराना बस स्टैंड) ।
२. राजनांदगाँव शहर में पोहे की दो दुकानें प्रसिद्द हैं, एक “मानव मंदिर”, और दूसरी “खंडेलवाल होटल” । मेरी राय में खंडेलवाल बेहतर है।
३. सुबह का प्लान सिर्फ़ रोमांटिक नहीं था, “अखिल भारतीय चटोरा महसंघ” का संस्थापक और अध्यक्ष होने के नाते भी मेरे कुछ कर्तव्य होते हैं।