मनोहर श्याम जोशी का उपन्यास “कसप” पढ़ा। इसमें कुमाऊँनी हिन्दी का जो सौंदर्य बिखरा है, वह शायद इस उपन्यास का सबसे अच्छा पहलू है। हालाँकि इसे कुमाऊँनी समाज की कहानी न मानते हुए वहाँ के ब्राह्मण समाज की कहानी अधिक माना जाना चाहिए। आदि से अंत तक केवल ब्राह्मण परिदृश्य है, हालाँकि केवल ऐसा होने में कोई बुराई नहीं लेकिन फिर इसे हिन्दी में कुमाऊँनी समाज का प्रतिनिधित्व करता हुआ उपन्यास न माना जाए।
जोशी जी सहित अनेक उपन्यासकार बात कहने के लिए “लार्जर देन लाइफ़” बातें बना देते हैं, यह अब अखरने लगा है। सामान्य पृष्ठभूमि की नायिका का सांसद बन जाना और नायक का हॉलीवुड का प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक बना दिया जाना कुछ ज़्यादा ही ऊँची छलांग है।
प्रेम के भावों में डूबे हुए संवाद आकर्षक हैं। नायिका अकेली है जिसका चरित्र जोशी जी ने पूरी सफलता से उकेरा है। शरतचन्द्र के बाद जोशी जी दूसरे पुरुष होंगे जो स्त्री मन को इतना समझ पाए।
कहानी कहने की अलग शैली दरअसल बोझिल मालूम हुई।
कुलमिलाकर अच्छा उपन्यास है लेकिन बहुत महान कृति कहलाने के योग्य नहीं है।
– हितेन्द्र अनंत