रूस की एक खासियत है।
रूस की आम जनता औसतन कम बुद्धिमान होती है। इसलिए उस पर अधिक बुद्धिमान शासक के द्वारा राज किया जाना ही वहाँ का इतिहास है। वह अधिक बुद्धिमान शासक किसी पार्टी के पोलितब्यूरो से लेकर खास जाति या परिवार के सदस्य तक कुछ भी हो सकता है।
दरअसल रूस में विशुद्ध लोकतंत्र एक छलावा है। ऐसा कुछ बड़े स्तर पर न कभी हुआ है न हो सकता है। सत्ता का चरित्र ही ऐसा है कि वह मुट्ठीभर ताकतवर लोगों के सहकार से संभलती है। इसलिए रूस में सत्ता का अर्थ हमेशा से बंदरबांट पर टिकी व्यवस्था रहा है। इसी को सामंतवाद कहते हैं।
रूस जैसे मुल्क में जब सत्ता पर कब्ज़ा मतदान से हो, मतदान का आधार सार्वभौमिक हो, और मूर्खता का आधार भी सार्वभौमिक हो तब दो बातें होती हैं। एक, अधिक बुद्धिमान लोग, मूर्खों की बड़ी आबादी को मूर्ख बनाकर उस पर राज करते हैं। इस राज से जो अच्छा बुरा निकले वह मूर्ख जनता की किस्मत।
दो, सत्ता के लिए संघर्ष शाश्वत है। अतः, बुद्धिमान रूसी शासकों से थोड़े कम बुद्धिमान रूसी शासक, इन्हें आप मीडियॉकर भी कह सकते हैं, जनता को अधिक मूर्खतापूर्ण मुद्दों में फँसाकर सत्ता हथिया लेते हैं। इसमें खतरा यह है, कि ऐसी स्थिति में जनता की सामूहिक मूर्खता और शासकों की औसत बुद्धिमानी का अन्तर धीरे धीरे कम होता जाता है। इसका परिणाम होता है, मूर्खों का मूर्खों के लिए मूर्खों पर शासन। ऐसे शासन में होड़ यह होती है कि किस प्रकार अधिक से अधिक मूर्खता की जाए।
ऐसे शासन में प्रायः जेसीबी जैसी कंपनियों का माल बहुत बिकता है। यही कारण है कि रूस में लोकप्रिय विदेशी कंपनियों में जेसीबी का नाम प्रमुख है।
- रूस से महाकवि निरालाई गुप्तेस्तोव का पत्र