- कुछ लोग इसे महान भाषण बता रहे हैं।
- कुछ का कहना है कि भाषण जैसा भी हो, राहुल ने साहस के साथ सही बातें की हैं।
मेरा अपना आकलन यह है:
- वक्तृत्व कला के पैमाने पर, अंग्रेज़ी में भी, यह औसत प्रदर्शन था। जो ठहराव लिए गए वो कम से कम ऐसे आदमी को नहीं लेने चाहिए जिसका करियर खराब करने का आधा श्रेय मीम बनाने वालों को जाता है।
- खरी बात कहने पर लोग सही बोल रहे हैं कि उन्होंने बहुत सी खरी बातें की। लेकिन इस देश में कौन नहीं है जो ऐसी बातें कर रहा है। इनसे भी अधिक ईमानदारी से खरी बातें करने वाले हैं, उनमें से कुछ जेल में हैं कुछ बाहर और कुछ संसद में भी।
- राहुल ने परनाना, दादी और पिता का ज़िक्र इस तरह से किया कि वो उनके उत्तराधिकारी हैं। उनका हक है कि वो उनकी विरासत पर दावा करें। लेकिन ऐसा करेंगे तो यह दावा छोड़ना पड़ेगा कि पूर्वजों की नाकामियों का मैं भागी नहीं हूँ।
- विदेश नीति में वर्तमान सरकार असफल है। इसमें कोई शक नहीं। नेपाल से लेकर श्रीलंका तक हर पड़ोसी हमने खोया है। चीन से लेकर पाकिस्तान तक हर तरफ़ हमने समस्याएँ बढ़ाई हैं। लेकिन एक “ईमानदार” और “निर्भीक” वक्ता को मालूम होना चाहिए कि इस किस्म की भूलें और असफलताएँ उन तीनों महान हस्तियों के खाते में भी हैं जिनकी महान विरासत और छाती की गोलियों का ज़िक्र राहुल ने संसद में किया।
- चीन के साथ 1962 में जो हुआ वह तत्कालीन सरकार की विदेश नीति और सैन्य मोर्चों पर विफलता ही थी। पंजाब संकट को पैदा करने में तत्कालीन सरकार के फैसले भी जिम्मेदार हैं। श्रीलंका में शांति सेना भेजने का प्राणघातक फैसला भी भयंकर भूल था। और भी बातें हैं जो गिनाई जा सकती हैं।
- तमिलनाडु में द्रविड़ दलों की बहुत सी बातें सही हैं। लेकिन यह भी सही है कि यही द्रविड़ दल एक समय तक अलगाववादी विचारों को खुलेआम हवा दे रहे थे। उसके बीज वहाँ के समाज में आज भी हैं। इस सबकी शुरुआत कांग्रेस के नेतृत्व द्वारा तमिलनाडु पर हिन्दी थोपने के प्रयासों से शुरू हुई थी।
- लोकतंत्र को मजबूती देने वाले संस्थानों को क्या कांग्रेस ने कमज़ोर नहीं किया? टी एन शेषन से पहले चुनाव आयोग की क्या दशा थी यह कम से कम तब की पीढ़ी को याद होगा। बूथ कैप्चरिंग शब्द आजकल अखबारों से ग़ायब है। पता कीजिए कि किनके राज में यह आए दिन छपा करता था? 356 का सबसे अधिक बेज़ा इस्तेमाल किसने किया? दंगों में क्या कांग्रेस के हाथ काले नहीं हैं?
- भ्रष्टाचार और एक लचर प्रशासनिक तंत्र कांग्रेस की पैदाइश हैं। ट्रांसफर उद्योग, पोस्टिंग के नाम पर वसूली, नौकरी देने में धांधली यह सब 2014 के बाद शुरू नहीं हुआ। आए दिन आलाकमान के द्वारा चुने हुए लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों को हटाकर कौन सरकारें पलटता रहा क्या यह किसी से छिपा है? अधिकारियों से इस्तीफे दिलवाकर उन्हें चुनाव लड़वाने का काम क्या कांग्रेस ने नहीं किया?
- देश के विश्वविद्यालयों का माहौल भाजपा ने खराब किया है। लेकिन 2014 के पहले क्या वहाँ शोध और पैटेंट की आंधी चल रही थी? छात्रसंघ के पुराने तरीके से चुनावों के दौर की हिंसाएँ और उनमें एनएसयूआई की गुंडागर्दी (बाकियों की भी) क्या लोग भूल गए हैं? गांधी परिवार की सुविधा के हिसाब से स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहास पाठ्यक्रमों में जुड़वाकर विश्वविद्यालयों में चमचागिरी करने वाले प्रोफेसरों की फौज किसने खड़ी की, क्या कोई राहुल गांधी को यह भी बताएगा? वैसे यह उसी पाठ्यक्रम का नतीजा है कि परिवार के बाहर के महान कांग्रेसी नेताओं को भाजपा अपने खाते में जोड़ पा रही है।
- ग़रीब, युवा, बेरोज़गार की बातें भाजपा नहीं करती। वह उन्हें गुमराह कर रही है। लेकिन राहुल के परिवार के लोग जब देश के प्रधान थे तब बेरोज़गारी की दर क्या थी? अच्छा-बुरा बाद में, लेकिन देश में नौकरियों में वृद्धि तब हुई जब नरसिंह राव की सरकार ने लाइसेंस कोटा राज खत्म किया। पटेल, शास्त्री और सुभाष छोड़ दीजिए, गांधी परिवार नीत कांग्रेस को नरसिंह राव का नाम तक लेने में शर्म आती है।
- पर्यावरण से खिलवाड़, आदिवासियों की ज़मीनें हड़पना, किसानों की दुर्दशा यह सब 2014 के बाद शुरू नहीं हुआ है।
- क्या कांग्रेस की वर्तमान राज्य सरकारें जिनके मुख्यमंत्री राहुल के नाम की कसमें आए दिन खाते रहते हैं, राहुल के भाषणों के अनुसार काम कर रही हैं? क्या अडानी को कोयला देने के लिए एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री दूसरे कांग्रेसी मुख्यमंत्री से नहीं लड़ रहा? क्या इन राज्यों में धर्म के नाम पर जनता को नहीं लुभाया जा रहा? क्या यहाँ ट्रांसफ़र-पोस्टिंग, रेत माफ़िया, आरटीओ आदि हर किस्म का भ्रष्टाचार खत्म हो गया है? राहुल महान नेता हैं तो अपने इन्हीं राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर उनका कितना असर है?
- यह सब इसलिए गिनाया है कि जिन भले लोगों के राहुल गांधी में मसीहा इत्यादि दिखाई देता है, वो सपनों की दुनिया से बाहर आएँ।
- एक “ईमानदार” और सत्यवादी वक्ता और नेता को किसी दिन इन ग़लतियों को स्वीकार करना चाहिए। आप पुरखों के नाम का गुणगान करने के हक़दार हैं बशर्ते आपमें उनकी नाकामियों का बोझा ढोने की भी ईमानदारी हो।
- अंत में, आप वह मत ढूंढिए जो आप देखना चाहते हैं लेकिन है नहीं। उस भाषण में अच्छा बहुत कुछ था, विलक्षण कुछ नहीं था।
हितेन्द्र अनंत