वेडिंग होती चाहे जिसकी हो उसकी शान रिटायर्ड अंकल-आंटी लोग हैं।
वेडिंग के मेहमानों का अस्सी प्रतिशत यही लोग होते हैं। चूँकि इनके पास फुल फ्री का समय है, तो ये हर रस्म को कुर्सी पर बैठकर आराम से देखते हैं।
इनमें से जो अंकल लोग दारू वाली खातिरदारी में शामिल होते हैं उनका जलवा सबसे अलग होता है। मैंने गौर किया है कि अंकल लोग चखना में उतना ध्यान नहीं देते, सीधे बोतल निबटा देते हैं। वेटर को “बेटे” कहकर बुलाते हैं। बातचीत के दौरान “मैं तब तक दफ़्तर नहीं छोड़ता था जब तक मेरी टेबल की सारी फाइलें न निबटा दूँ”, और “काम ईमानदारी से किया हमने, तो दिल में एक सैटिस्फैक्शन रहता है” ज़रूर बोलते हैं।
हमको सबसे सैड लगते हैं वो अंकल जो न पीते हैं, न खाते हैं, न नाचते हैं। ये चुपचाप हर जगह मौजूद होते हैं। ये अगर लहसुन-प्याज़ न खाएँ तो मेज़बान को अलग टेंशन लेना पड़ता है। इनको मंदिर वगैरह दिखाने के लिए एक्सट्रा गाड़ियों का इंतज़ाम भी करना पड़ता है।
वेडिंग में फोटोशूट के लिए दस लड़के अलग से लगे हों, लेकिन अपने फोन से अंकल को हर रस्म का फोटो लेना होता है।ये अंकल लोग शादी में जितने नए अंकल-आंटी से मिलें, उन सबका तुरन्त ही एक व्हाट्सऐप ग्रुप बना लेते हैं। उसमें “चाय शुरू हो गई है”, से लेकर “दुल्हन अभी तक स्टेज पर नहीं आई” जैसी महत्वपूर्ण सूचनाएँ भी होती हैं, मोदी जी तो ख़ैर होते ही हैं।
आंटी लोग आजकल रस्मों पर कमेंट नहीं करतीं। ना ही वो रिश्ता ढूंढती हैं। क्योंकि उनको मालूम है कि आजकल वो भाव उनको मिलेगा नहीं। आजकल आंटियाँ ड्रेस कोड के हिसाब से तैयार होने और स्टेटस लगाने में अपना समय अधिक व्यतीत करती हैं।सब मेहमान चला जाता है, लेकिन अंकल-आंटी शादी के बाद भी कुछ दिन रुक जाते हैं।
हमको मालूम है कि एक दिन हम भी अंकल बनूंगा, लेकिन इसको पढ़कर कुढ़ने वाले अंकल जान लें कि तब हम खाली बैठकर रस्में देखने की बजाए, बाकी के अंकल पर यूँ ही पोस्ट बनाकर हँसता रहूंगा।
– हितेन्द्र अनंत