संस्मरण

जय भोले!

आज फखरुद्दीन की याद आ गई।

हम दोनों कालीबाड़ी स्कूल में पढ़ते थे। रायपुर शहर में कालीबाड़ी (काली माँ का मंदिर) के आसपास के इलाके को इसी नाम से जाना जाता है।

एक दिन फखरुद्दीन ने मुझे बताया कि कालीबाड़ी में एक पान की दुकान है। वह पानवाला शंकर जी का भक्त है उसने अपनी दुकान में एक बड़ा सा घण्टा लटका रखा है। जब भी कोई उसकी दुकान के सामने से गुज़रते हुए “जय भोले” की आवाज़ लगा दे तो पानवाला श्रद्धापूर्वक घण्टा बजा देता है।

उस उम्र में यह बात मुझे इतनी दिलचस्प जान पड़ी कि मैंने फखरुद्दीन से कहा कि मुझे वह दुकान दिखाए। आधी छुट्टी के वक्त हम सायकल से वहाँ गए। दुकान के पास आते ही फखरुद्दीन ने ज़ोर से आवाज़ लगाई “जय भोले!” और पान वाले ने घण्टा बजा दिया।

यह देखकर हम इतना हँसे कि थोड़ी दूर आगे जाकर हँसते ही रहे। बाद में अनेक बार हमने यह प्रयोग आज़माया और सफ़ल भी रहे।

फखरुद्दीन एक ख़ास अदा से “जय भोले!” कहता और फिर ज़ोरों से पैडल मारकर भाग जाता। कालीबाड़ी इलाका चारों ओर स्कूलों से घिरा है। इसलिए शायद पानवाले भैया को बच्चों की इस हरकत से कभी दिक्कत नहीं हुई होगी। भक्ति की बात तो खैर है ही।

आज घर में किसी कारणवश यह क़िस्सा सुनाया और फखरुद्दीन की याद आ गई। तब न उसे मालूम था कि मैं हिन्दू हूँ न मुझे मालूम था कि वह मुसलमान है।

फिर पढ़ाई में कमज़ोर होने के कारण मैं कुछ देर से इंजीनियरिंग कॉलेज पहुँचा जहाँ वह मेरा सीनियर था।

उसके कुछ साल बाद अचानक रायपुर रेल स्टेशन में मिल गया। मैंने जुर्माना अदा कर, उसके साथ नागपुर तक सफ़र तय किया। इस समय तक सबके पास मोबाइल फोन आ गए थे। लेकिन हम दोनों ने एक दूसरे को उसके घर के लैंडलाइन नम्बर बता दिए और अपनी याददाश्त और दोस्ती की दाद दी। उसके बाद से उससे सम्पर्क नहीं है। बीएसएनएल में अफ़सर हो गया था तब।

फखरुद्दीन को अपना नाम पसंद नहीं था। लड़कियों और नए लोगों को अपना नाम फ़ारुख बताया करता था। हमारे लिए हमेशा ही वह फखरू था (फ में बिना किसी नुक्ते के)।

– हितेन्द्र अनंत

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