“कांग्रेस कल्चर” वो सच्चाई है जिसे भाजपा ने तहे दिल से अपना लिया है। पुलिस का बेज़ा इस्तेमाल किसने शुरू किया, होने दिया और उसे इंतेहा तक ले गए? इसलिए इन मामलों पर कम से कम वो दल आँसू न बहाए जो इन सबका जिम्मेदार है।
पुलिस सुधार किसने वर्षों लागू नहीं किए? किसने औपनिवेशिक न्याय व्यवस्था को बदलने में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं दिखाई? क्यों नहीं दिखाई यह भी हम जानते हैं। क्योंकि इस कमज़ोर व्यवस्था का सत्ता पर क़ाबिज़ वर्ग ने पूरा फ़ायदा उठाया।
अब जब इसी “तंत्र” (पुलिस, ईडी, सीबीआई, एनआइए) से बड़े-बड़े नहीं बच पा रहे हैं, तो याद किया जाना चाहिए कि आम आदमी के लिए इस तंत्र के मायने 2014 से पहले क्या बहुत अलग थे?
भाजपा ने संस्थानों की गिरावट की प्रक्रिया को बेहद तेज़ किया है। उसके पापों की सूची बहुत लम्बी है और होती जा रही है। लेकिन लगभग वही के वही पाप कांग्रेस ने किए हैं, बल्कि इस पूरी प्रक्रिया की शुरुआत उसी ने की है। दोनों के पापों में फ़र्क इतना है कि जब सत्ता की चाबी कांग्रेस के पास थी तो सब कुछ बड़ा एलिट था, संस्थानों के मुखिया बड़े नामवाले लेखक, कलाकार, प्रोफेसर, जज, अफसर आदि होते थे, ये सभी तंत्र का बेजा इस्तेमाल किया करते थे, लेकिन इनकी भाषा एलिट थी। अब तंत्र पर वो हैं जो शाखा स्तर के ज्ञान से उपजे हैं, या उसका दिखावा करते हैं।
इसलिए, दुःख अपन को है, लेकिन एब्सोल्यूट टर्म्स में, विशुद्ध रूप से, अब आईने के सामने खड़े शख़्स के ख़िलाफ़ उसके प्रतिबिम्ब का समर्थन करने को दिल गवारा नहीं।
– हितेन्द्र अनंत