जिस शहर में मेरी ससुराल है, वहाँ एक दुकान है – “फलाने फोटो फ्रेम एण्ड जलेबी भण्डार”। पहली बार देखा तो बहुत हँसी आई थी।
अब सोचता हूँ, क्या हुआ होगा? एक फोटो फ्रेम बनाने वाले ने सोचा, चलो इसी दुकान में जलेबी बनाकर क्यों न बेच लें?
सीमेन्ट की फैक्ट्री वाले सेठ सीमेन्ट की और भी फैक्ट्रियाँ लगाते हैं। या फिर वो अन्य सेठों की सीमेन्ट की फैक्ट्रियाँ ख़रीद लेते हैं। ऐसा क्यों नहीं होता कि सेठजी सोचें कि चलो एक सीमेन्ट की फैक्ट्री तो हो गई, अब एक फ़ूलों की दुकान लगा लेते हैं।
सिर्फ़ सेठ क्यों? डॉक्टर्स के बच्चे ज़्यादातर डॉक्टर बनते हैं। क्योंकि उन्हें माँ-बाप का नर्सिंग होम चलाना पड़ता है। नर्सिंग होम वो बेशक चलाएँ, लेकिन ऐसा क्यों नहीं होता कि वो नर्सिंग होम के साथ ही एक साड़ी सेंटर खोल दें?
ध्यान रहे कि मैं यहाँ “अपनी मर्ज़ी के करियर” की बात नहीं कर रहा। मैं बात कर रहा हूँ एक साथ अलग-अलग रुचियों के काम करने की। पैटर्न्स में जीना आसान है, इसलिए लोग बहुत लोड नहीं लेते कि कुछ सोचें और अलग करें। जो लोग समाज में अनेक बार नौकरियाँ छोड़ते हैं, या व्यवसाय बदलते हैं, उन्हें प्रायः लापरवाह और असफल समझा जाता है।
लोग कहते हैं कि एक ही काम को बहुत अधिक बार करो, और उसपे फ़ोकस रखो तो उसमें निपुणता प्राप्त कर सकते हो। लेकिन मुझे लगता है कि उनकी ज़िंदगी अधिक ख़ूबसूरत और अनुभव-संपन्न है जो अलग-अलग घाटों का पानी पीते हैं।
काम ही क्यों, खाने और पहनने में भी ऐसा कुछ आज़माना चाहिए। जैसे कि जलेबी के साथ बैंगन का भरता खाओ, सूट के साथ गमछा ले लो। ये क़ानून क्यों मानना कि रबड़ी-जलेबी ही “डेडली कॉम्बिनेशन” है?
बाकी आजकल इतने से लिखे को भी लोग लम्बा मानते हैं। आपने पढ़ा, अच्छा किया।
– हितेन्द्र अनंत