समीक्षा

फिल्म समीक्षा – सोल (SOUL, एनिमेशन)

“मैं कौन हूँ?”, “जीवन का उद्देश्य क्या है?” आदि ऐसे प्रश्न हैं जिन पर न जाने कितना कहा और लिखा गया है।  अनेक फ़िल्में भी बनी होंगी, लेकिन ऐसी फ़िल्म, वह भी एक एनिमेशन फ़िल्म शायद पहली बार बनी है।  पिक्सार स्टूडियो की एनिमेशन फ़िल्म “सोल” (=आत्मा), एक बेहद अलग प्रयोग है। पिक्सार स्टूडियो अपनी शानदार एनिमेशन फ़िल्मों के लिए जाना जाता है। इनकी फ़िल्में हर बात में आम फ़िल्मों के जैसी ही मज़बूत, गंभीर और रोचक हुआ करती हैं। तकनीकी और कला मिलकर, फ़िल्मों को किस स्तर तक पहुँचा सकते हैं, वह ऐसी एनिमेशन फ़िल्मों से पता चलता है। 

“सोल” की कहानी जीवन और जीवन तथा मृत्यु के बीच की एक दुनिया में आना-जाना करती है। मृत्यु के बाद, पुनर्जन्म और निर्वाण (इसे फ़िल्म में “द ग्रेट बियॉन्ड” कहा गया है) के बीच आत्माओं की व्यवस्थाएँ संभालने वाली एक दुनिया है।  कहानी का नायक “जो गार्डनर” जैज़ संगीत में बड़ा नाम कमाना चाहता है, वह उस बीच की दुनिया में फँस जाता है।  उसके पास निर्वाण का विकल्प है, लेकिन संगीत के क्षेत्र में बड़ा नाम करने की तमन्ना उसे वापस धरती की और खींचती है। उसकी इसी उधेड़बुन में कहानी अपना विस्तार पाती है। 

बीच की उस दुनिया से वापस धरती पर आकर, एक दिन अपने सपने को पूरा होते देखकर भी, जो गार्डनर जीवन में अधूरापन महसूस करता है। इसी जीवन, जीवन के अर्थ, उद्देश्य और निर्वाण के प्रश्नों के बीच कहानी अपना आकार लेती है। 


इन प्रश्नों को शायद अन्य फिल्मों ने भी लेने का प्रयास किया होगा। लेकिन फिल्म के निर्देशकों और लेखकों की कल्पनाशीलता की दाद देनी होगी कि वे बीच की उस दुनिया एक परिपूर्ण खाका प्रस्तुत करते हैं।  यह सब करते हुए फ़िल्म अनेक सवाल खड़े करती है, जिनमें सबसे बड़ा यह है कि क्या वाकई जीवन का कोई उद्देश्य होता है? हम सभी को बचपन से यही सिखाया जाता है कि जीवन का एक उद्देश्य होना चाहिए, लेकिन क्या वाकई ऐसा है? क्या यह आवश्यक है कि जीवन कहीं किसी ख़ास मंज़िल तक पहुँचे? यह एक गंभीर विषय है, जिससे काफी मनोरंजक तरीके से फिल्म दिखाती है।   

जिस प्रकार की कल्पनाशीलता फ़िल्म में देखने को मिली, उसके बाद यही कहना होगा कि इस विषय पर इतना गहरे उतरना शायद किसी एनिमेशन फ़िल्म के लिए ही सम्भव था।  

फ़िल्म अंत तक बांधे रखती है।  भारत में डिज्नी-हॉटस्टार पर देखी जा सकती है। 

जीवन के उद्देश्य की चर्चा चल ही पड़ी तो महान नाटककार हबीब तनवीर साहब के एक कविता याद आ गई।  

रामनाथ का जीवन चरित्र

रामनाथ नें जीवन पाया साठ साल या इकसठ साल

रामनाथ नें जीवन में कपड़े पहने कुल छह सौ गज़

पगड़ी पॉंच, जूते पंद्रह

रामनाथ नें अपने जीवन में कुल सौ मन चावल खाया

सब्‍जी दस मन, 

फाके किए अनगिनत, शराब पी दो सौ बोतल

अजी पूजा की दो हज़ार बार

रामनाथ नें जीवन में धरती नापी

कुल जुमला पैंसठ हज़ार मील

सोया पंद्रह साल.

उसके जीवन में आयीं, बीबी के सिवा, कुल पाँच औरतें

एक के साथ पचास की उम्र में प्‍यार किया

और प्‍यार किया नौ साल

सत्‍तर फुट कटवाये बाल और सत्रह फुट नाख़ून

रुपया कमाया दस हज़ार या ग्‍यारह हज़ार

कुछ रुपया मित्रों को दिया, कुछ मंदिर को

और छोड़ा कुल आठ रुपये उन्‍नीस पैसे का क़र्ज …

… बस, यह गिनती रामनाथ का जीवन है

इसमें शामिल नहीं चिता की लकड़ी, तेल, कफ़न,

तेरहीं का भोजन

रामनाथ बहुत हँसमुख था

उसने पाया एक संतुष्‍ट-सुखी जीवन

चोरी कभी नहीं की-कभी कभार कह दिया अलबत्‍ता

बीबी से झूठ

एक च्‍यूँटी भी नहीं मारी-

गाली दी दो-तीन महीने में एक आध

बच्‍चे छोड़े सात

भूल चुके हैं गॉंव के सब लोग अब उसकी हर बात.

हबीब तनवीर

– हितेन्द्र अनंत

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