विविध (General)

अंकल की समस्या – महाराष्ट्र में लोग मराठी क्यों बोलते हैं?

कहानी आपबीती है। सच्ची है।

एक अंकल और आंटी काफ़ी महीनों से, वो क्या कहते हैं, खाए हुए हैं।

इंदौर का परिवार है। अंकल हमारे अब्बा हुज़ूर के सहपाठी हैं। पुणे में उनके बच्चे काम करते हैं। मेरे पास तब आए जब उनको मेरे इलाके में किराए का मकान चाहिए था। बोले मकान दिलवा दो। ऐसी सोसायटी हो जहाँ मराठी न रहते हों।

उनको अच्छी तरह मालूम है कि मेरी बीवी मराठी है। मैं खुद यहाँ 14 सालों से रह रहा हूँ इसलिए कोई माने या न माने मैं भी मराठी हूँ। फिर भी, बीवी के सामने कहते हैं कि हमको ऐसी सोसायटी चाहिए जहाँ मराठी न रहते हों। मैंने पूछा क्यों? तो आंटी बोली, “ये लोग” आखिर अपना रंग दिखा ही देते हैं। मैंने पूछा क्या रंग दिखा देते हैं? बोली अरे लैंग्वेज का बहुत प्रॉब्लम है। अगर दो मराठी मिल जाएँ तो आपस में मराठी में बात करते हैं, फिर ये आपस में एक हो जाते हैं।

मैंने पूछा आपके इंदौर में कोई दो हिन्दी वाले किसी मराठी के सामने मिलें तो क्या हिन्दी में बात नहीं करते? जवाब नहीं था। मैंने पूछा आपसे पुणे में किसने हिन्दी में बात नहीं की? आप जिस मराठीभाषी से मिलिए वो आपसे हिन्दी में बात कर ही लेगा। फिर आपको दिक्कत क्या है? बोली, नहीं लेकिन ये लोग हमको अपने में शामिल नहीं करते।

मैंने कहा, लड़के आपके यहाँ पढ़ने आए, नौकरी करने आए, अगर ये लड़के अमेरिका जाएंगे तो क्या अमरीकी हिन्दी में उनसे बोलेंगे या ये अंग्रेज़ी में बोलेंगे? आप यहाँ की भाषा सीखो। उनसे बात करो।

तो अंकल बोले लेकिन यहाँ त्यौहारों का वो मज़ा नहीं जो “अपने उधर” है। मैंने पूछा, क्या आप इंदौर में गुड़ी पड़वा मनाते हैं? बोले नहीं लेकिन इंदौर में बहुत से मराठी रहते हैं वो तो मनाते हैं। तो मैंने कहा, लेकिन इंदौर में गुड़ी पड़वा का वो मज़ा नहीं हो सकता जो पुणे में है। आप यहाँ रहकर यहाँ के लोगों से यह अपेक्षा कर रहे हैं कि ये न केवल अपनी भाषा आपके लिए छोड़ दें, बल्कि अपने त्यौहार भी छोड़कर आपके त्यौहार मनाएँ?

ये वो अंकल हैं जो अपने फेसबुक पर अखण्ड भारत बनाना चाहते हैं। जिन्होंने ये भी लिखा कि इतिहास में केवल हिन्दू राजाओं की कहानी पढ़ानी चाहिए। मुसलामानों और मुगलों की सब बातें डिलीट करवा दो। इनके अखण्ड भारत में लोग केवल हिन्दी बोलेंगे।

अंकल को मटन खाने का विशेष शौक है। खाते हैं तो साथ में ब्लेंडर्स प्राइड भी पीते हैं। अंकल को ये नहीं मालूम कि जो लोग उनके लिए अखण्ड भारत बनाने का ठेका लेकर बैठे हैं वो जिस दिन अखण्ड भारत बना देंगे उस दिन सबसे पहले दारू और मटन बन्द करा देंगे। हिन्दी भी शायद बन्द करवा दें! क्योंकि अखण्ड भारत के ठेकेदारों के भी ठेकेदार तो प्रायः मराठी ही बोलते हैं। अंकल को ये बात समझ नहीं आती।

मुझे तो लगता है एक न एक दिन अखण्ड भारत बन ही जाएगा। मैंने तो मराठी सीख ली है। उस दिन तक ज़िंदा बच गए तो अंकल का क्या होगा?

– हितेन्द्र अनंत

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