द मेकिंग ऑफ़ – अ हिंदी कविता
[कवि ने सोचा कि कविता लिखी जाए
कविता में जनता के सरोकार हों
ग्राम्य जीवन की महक हो
इसलिए कवि ने लिखा]
चरवाहों के बच्चे
घूमते हैं सारा दिन
हाथों में बाँसुरी और एक लाठी लिए
हाँकते हुए बकरियों को
(यहाँ पैसिव वॉइस में “बच्चे चरवाहों के” लिखा जा सकता था
घूमते की जगह “भटकते हैं सारा दिन” कैसा रहेगा?
बाँसुरी और लाठी कुछ जम नहीं रहा
बकरियों की जगह भेड़ें लिखें तो अपील यूनिवर्सल होगी
चरवाहों में कुछ मिथिकल सा एलिमेंट है
इसे प्रगतिशील और कंटेम्परेरी
बनाने के लिए चरवाहों को
मज़दूरों से रिप्लेस किया जाए)
[सो अब कवि ने लिखा]
बच्चे मज़दूरों के
भटकते हैं सारा दिन
उस बनती हुई ऊँची इमारत के इर्द गिर्द
जहाँ बिखरी हुई रेत और गिट्टी की तरह
बिखरता जाता है उनका बचपन
(पैसिव वॉइस बेहतर है
भटकते की बजाय भटकते रहते हैं होना चाहिए
बिखरी हुई रेत की जगह “बिखरी हुई बालू” बेहतर होगा
बचपन बिखरता जाता है या छूटता जाता है?
बिखरने में लय है
इसके आगे जल-जंगल-ज़मीन की एंट्री बनती है
इसके आगे कॉन्फ्लिक्ट जल्द आना चाहिए
एक इमोशनल कैरेक्टर भी चाहिए
माँ को लाना होगा)
[सो कवि ने आगे लिखा]
माँ उन बच्चों की
चाहकर भी नहीं ले पाती उनकी सुध
उसके सर पर काम का बोझ है
और दिल में बच्चों के बिखरते बचपन का दर्द
याद आती है उसे
गाँव के जल, जंगल और ज़मीन की
(सुध नहीं ले पाती या नज़र नहीं रख पाती?
माँ की एंट्री इमोशनल है
लेकिन जनवादी पक्ष छूटना नहीं चाहिए
कविता की शुरुआत में ही सरोकार हैं सर्वहारा वर्ग के
लेकिन अब तक इस कविता में आग नहीं है)
[कवि अब आग कहाँ से लाएगा
वह कोई गुलज़ार तो है नहीं
कि “जा पड़ोसी के चूल्हे से आग लई ले”
यह नितांत छिछोरी बात हो गई
वैसे पड़ोसी के चूल्हे से आग लेने में
एक क़िस्म की कॉमरेडरी तो है ही
कवि ने फ़ैसला किया है कि वह आगे लिखेगा]
कृपया ध्यान दें:
१. कोष्ठक से बाहर है वह कविता है।
२. ( ) के अंदर कवि की टीप है।
३. [ ] के अंदर निरालाई गुप्तेस्तोव की टीप है।
प्रस्तुति
निरालाई गुप्तेस्तोव
सुदूर साइबेरिया के क्रांतिकारी कवि
नोट: इनकी खुद की कविताओं में हमेशा आग होती है।