अफ़सर लिखे तो कविता हो जाती है
वो गर्मी के दिन थे
सड़क पर पिघल रहा था कोलतार
(कवि क्या डामर है जो डामर लिखेगा?)
उसके पैरों में नहीं थी चप्पल
सर पर तपता सूरज
हाथों में थैला
मुट्ठी में सौ का नोट
मन में सूची सामानों की
दिल में खौफ़ मालकिन का
कि देर ना हो जाए
अफसर ने लिखी यह कविता
सर्वहारा वर्ग के प्रति उसकी संजीदगी को देखकर
पत्रिका के सम्पादक की आंखों में आँसू आ गए
अफ़सर की कविताओं में बिम्ब है चिम्ब है इम्ब है
भाषा ऐसी है कि वैसी है
संवेदना स्वर बनकर फूट पड़ी है
नए प्रतिमान गढ़े हैं
कविता हो तो ऐसी हो
- निरालाई गुप्तेस्तोव
(सुदूर रूस के साइबेरिया प्रांत में रहने वाले क्रांतिकारी कवि)
नोट – इनकी कविताओं में आग है।