अगर मैं सोचूँ कि एक औसत भारतीय के लिए आदर्श व्यक्तित्व कौन है, तो उत्तर में दो नाम आते हैं। इनका आस्तिक – नास्तिक, या धार्मिक – तार्किक होने से कोई लेना देना नहीं है। ये दो नाम हैं बुद्ध और शिव। एक जिनके पास जीवन जीने का समग्र उपाय है, उनकी शिक्षा और उनका मार्ग पूरे विश्व के कल्याण का रास्ता है। दूसरे वह हैं जिनसे प्यार से और हक़ से कोई भी कुछ भी मांग लेता है। शिव का नाम ही इस विशाल भूभाग की जनता के लिए जीने की प्रेरणा है। बुद्ध का मार्ग प्रत्येक प्रश्न का उत्तर है। शिव का दयालु स्वभाव प्रत्येक दुर्बल के लिए सहारा है, शिव का वेश, उनका निवास, उनके आभूषण सभी प्रकृति से एकाकार जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
बुद्ध का धम्म, जैसा आंबेडकर ने समझा और समझाया, मनुष्य को धर्मों और आडंबरों की गुलामी से मुक्त करता है। धम्म मनुष्य को संगठित करता है लेकिन एक दूसरे के कल्याण के लिए, किसी से लड़ने या किसी की संख्या कम-ज़्यादा करने के लिए नहीं। वहीं शिव की छवि मात्र ही आदिकाल से इस देश के मनुष्यों के प्रकृति से रिश्ते को परिभाषित करती है, वह एक विशेष जीवनशैली का संदेश देती है जहाँ मनुष्य संग्रह नहीं करता, हमेशा देने को तत्पर है लेकिन वह कमज़ोर नहीं है, आवश्यकता पड़ने पर दंड भी दे सकता है। शिव आदि योगी हैं। बुद्ध आदि गुरु हैं।
इस बात पर वाद या विवाद की आवश्यकता नहीं है। किसी बाइनरी या द्वैत में फँसने से कुछ हासिल होगा नहीं। जो इसे समझ सकें अच्छा है। जो न समझें वो जाने दें। यह केवल उनके लिए लिखा है जिन तक यह बात पहुँचनी चाहिए।
– हितेन्द्र अनंत