जूली एन्ड जूलिया (2009)
यह दो सच्ची कहानियों और दो अलग-अलग किताबों पर आधारित फ़िल्म है। मेरा इसे देखने का सबसे बड़ा कारण यह है कि यह पाककला से जुड़ी कहानी है।
जूलिया चाइल्ड प्रसिद्ध अमेरिकन टेलीविजन कुक एवँ व्यंजनों की किताबों की लेखिका थीं। 1949 के आसपास फ्रांस में अपने पति के साथ रहीं। वहाँ फ्रेंच व्यंजन बनाना सीखा। फ्रेंच कुकिंग में एक डिप्लोमा भी हासिल किया। ध्यान रहे कि पश्चिमी दुनिया में फ्रेंच पकवान लंबे समय तक शीर्ष पर रहे हैं। इन्हें पकाना भी काफ़ी कठिन माना जाता है। जूलिया चाइल्ड ने अमेरिकन मध्यवर्ग के लिए फ्रेंच कुकिंग को आसान बनाते हुए व्यंजनों की एक क़िताब लिखी। इसके बाद अनेक दशकों तक उन्होंने अनेक टेलीविजन कार्यक्रमों के ज़रिये अमेरिकी जनता को फ्रेंच खाना पकाना सिखाया। उनकी मीठी आवाज़ और दोस्ताना अंदाज़, कार्यक्रम को और भी अधिक आकर्षक बनाया करते थे। अनेक वीडियो आज भी यूट्यूब पर मौजूद हैं। फ़िल्म जूलिया के फ्रांस जाने से लेकर किताब प्रकाशित होने तक की उनकी दिलचस्प यात्रा को एक दूसरी कहानी के साथ जोड़कर दिखाती है।
दूसरी कहानी है 21वीं सदी के पहले दशक की जब ब्लॉगिंग की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही थी। तब जूली पॉवेल एक अनोखा चैलेंज लेती हैं। वो फैसला करती हैं कि वो जूलिया की किताब से करीब 550 व्यंजन 365 दिनों में बनाएंगी और उसके बारे में रोज़ ब्लॉग पर लिखेंगी । इतने सारे फ्रेंच व्यंजन बनाना, उन पर रोज़ ब्लॉग लिखना, वह भी तब जब जूली दिन में सरकारी नौकरी करती हों, आसान नहीं था।

दोनों की कहानियाँ अलग-अलग हैं। लेकिन उनमें जो साझा है वह दोनों का खाना बनाने की कला के प्रति समर्पण और जूली का जूलिया से एक अदृश्य गुरु-शिष्य का रिश्ता। फ़िल्म इन्हीं दोनों कहानियों को मिलाकर बनी है।
मेरिल स्ट्रीप ने जूलिया का क़िरदार निभाया है। वो बेहद खूबसूरत तो हैं ही, एक महान कलाकार भी हैं। चालीस के दशक की अमेरिकन महिला की भूमिका को उन्होंने बेहद अच्छे से निभाया है। उनकी फिल्म “आउट ऑफ अफ्रीका” देखी जानी चाहिए। शानदार फ़िल्म है।
एमी एडम्स ने जूली की भूमिका निभाई है। उनका अभिनय भी जबरदस्त है।
फ़िल्म दो क़िताबों को जोड़कर बनाई गई है तो कथानक तो कठिन होना ही था। किंतु बेहद अच्छे से लिखा गया है। नोरा एफ्रन ने ही इसका कथानक लिखा है और वही इसकी निर्देशक भी हैं।
दो अलग-अलग समयों में दो बेहद अलग पृष्ठभूमियों की महिलाओं का कुछ कर गुज़रना कैसे अलग-अलग भी है और थोड़ा एक जैसा भी! देखने लायक है फ़िल्म।
फ़िल्म नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है।
हितेन्द्र अनंत