विविध (General), My Poems (कविताएँ)

भुला देना चाहता हूँ

आपके लिए आसान होगा यह कहना
कि सब कुछ याद रखा जाएगा
मेरे लिए नहीं है
अब तक जो याद रखा है
और रोज़ जो जुड़ता जा रहा है
वह मुझे बहुत बीमार बना रहा है

क्या करूंगा मैं याद रखकर?
क्या कोई जंग जीत जाने के बाद
सज़ाएँ लिखूंगा और बख़्शीशें बाटूंगा?
या स्वर्ग और नर्क के दरवाज़े पर
कहूँगा कि आप बाएँ मुड़िए और आप दाएँ?

इससे पहले भी बहुत कुछ याद रखा
क्या हुआ?

यह जो यादें भरी हैं
वो अंदर हैं
तकलीफ़ें बनकर रहती हैं
यादें हैं तो बार-बार आती हैं
बार-बार, वही सब
अब और नहीं

लोग कहते हैं यह दुनिया बहुत छोटी हो गई है
पर इस छोटी सी दुनिया में भी
किसी कोने में एक छोटी सी और दुनिया होगी
मैं वहाँ छिपकर रहना चाहता हूँ
जो है वह भुला दूँ
और नया कुछ न जोड़ूँ

आप मुझे कायर, भगौड़ा और डरपोक कहिए
कहिए मेरा भी यह सब याद रखा जाएगा
मैं आपके इस याद रखने को भी
भुला देना चाहता हूँ

– हितेन्द्र अनंत

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