दशहरे का चंदा मांगने गए तो आंटी बोली चंदा नहीं देंगे तुम मन का रावण जलाओ।
होली का चंदा मांगने गए तो आंटी ने चंदा दे दिया। क्योंकि आंटी के घर का गेट लकड़ी का था।
होली का चंदा इकट्ठा हुआ तो अंकल लोगों ने पूरा पैसा रखवा लिया। बोले थोड़े का नगाड़ा लेंगे बाकी से लकड़ी खरीदेंगे। नगाड़ा फागुन से 15 दिन पहले आ गया। अंकल लोग रोज़ रात को नगाड़ा बजाते थे और फाग गाते थे। हमको बोलते थे तुम लोग फाग गाने मत आओ और घर में बोर्ड की परीक्षा की तैयारी करो।
अंकल लोग फाग शुरू करते थे “प्रथम चरण गणपति को” से, फिर “मुरली बजावै कन्हैया” से आगे जाकर अश्लील फाग में कूद जाते थे।
हम लोग बोलते गर्मी है हम छत पे जाकर पढ़ेंगे। छत से हम लोग अश्लील फाग सुनने तक रुकते फिर सो जाते।
एक दिन हमने अंकल लोगों से बोला हम रात को नहीं शाम को नगाड़ा बजाएंगे। हमने एक घंटे के लिए नगाड़ा लिया और नगाड़ा फूट गया। हमने आरोप मन का रावण जलाने वाली आंटी के लड़के पर लगा दिया।
फिर होलिका दहन से एक रात पहले जब अश्लील फाग गाने के बाद सब अंकल सो गए। तब हमने जाकर होली में माचिस मार दी। उसके बाद से अंकल लोगों ने हमको चंदा मांगने से मना कर दिया।
अब पुणे में फाग गाने का मन करता है। लेकिन यहाँ नगाड़ा बजाऊंगा रात को तो आंटी पुलिस बुला लेगी। आंटी बोल दे उसके पहले मैं खुद ही मन में नगाड़ा बजाता हूँ और मन में ही फाग गाता हूँ। होली में अपने छत्तीसगढ़ को बहुत मिस करता हूँ मैं।
– हितेन्द्र अनंत