संघ और भाजपा जिस तरह का हिन्दू धर्म भारत में थोपना चाहते हैं उसके कुछ ख़ास लक्षण इस प्रकार हैं:
१. इसमें वैष्णव धारा से केवल शाकाहारी मूल्यों को लिया गया है। उसमें जो सात्विकता, सत्यवादिता, परहित एवं अहिंसा जैसे मूल्य हैं, उन्हें छोड़ दिया।
२. शैव-शाक्त धाराओं से केवल हिंसक भाव लिए हैं। उनमें जो राजसी गुणों की स्वीकृति है, जिसके तहत मांस-मदिरा भी आते हैं, उनसे किनारा कर लिया है।
३. दोनों धाराओं में प्रेम को उच्च स्थान पर रखा जाता है। किंतु संघ परिवार को प्रेम नापसंद है।
४. संघ धार्मिक-आध्यात्मिक प्रेरणा के लिए विवेकानंद की ओर देखता है। किंतु उनके द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकता पर प्रबल जोर दिए जाने, इस्लाम की प्रशंसा एवं ब्राह्मणवाद की आलोचना सहित वैश्विक बंधुत्व के उनके संदेश से संघ को कोई लेना-देना नहीं है।
५. गौभक्ति के बीज भारत में हनुमान प्रसाद पोद्दार के नेतृत्व नें गीताप्रेस गोरखपुर ने बोए थे। महिलाओं की सीमित भूमिका व गौभक्ति जैसे सिद्धांत संघ में इसी मंडली से आए हैं।
६. हिन्दू (शब्द प्रयोग प्रचलित अर्थों में लिया जाए) दर्शन में जो वेद-विरोधी परंपराएं हैं, जैसे कि उपनिषद, उनके सिद्धांतों का संघ-विहिप प्रचारित हिंदुत्व में कोई स्थान नहीं है। उपनिषद मोटे तौर पर कर्मकांड विरोधी, यज्ञ विरोधी, एकेश्वरवादी (ब्रह्मवादी) हैं।
७. संघ दयानंद सरस्वती (आर्य समाज) का भक्त है। लेकिन दयानन्द द्वारा शैव, वैष्णव, तुलसी, कृष्णमार्गी, राममार्गी व सभी पौराणिक धाराओं की कठोर आलोचना को वह सिरे से भुला देता है।
इन पंक्तियों का लेखक नास्तिक है, किन्तु यह मानता है कि संघ प्रचारित हिंदुत्व से असली लेकिन भुला दिया गया हिन्दू धर्म कहीं बेहतर है।
– हितेन्द्र अनंत