14 फरवरी को मनाए जाने वाले वेलेंटाइन डे का कट्टरपंथी ताकतों ने हरसम्भव विरोध हमेशा किया है। इसे बाजारू त्यौहार घोषित करने से लेकर प्रेमी युगलों की सार्वजनिक मारपीट तक अपनाए गए सारे हथकंडे बीते दो दशकों में असफल हो चुके हैं।
फिर ब्राह्मणवादी महाअस्त्र यानी संस्कृतिकरण का उपयोग किया गया (बुद्ध को नवम अवतार घोषित करने जैसा)। कहा गया कि इस दिन मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जाय। अब इनसे कौन पूछे कि भला इसी दिन क्यों? जिस पंचांग को तुम ईसाई पंचांग कहकर नकारते हो उस दिन ही भला माता-पिता की पूजा क्यों करनी है? मैं तो यह भी पूछना चाहता हूँ कि माता-पिता की पूजा ही क्यों करनी है? सम्मान काफ़ी नहीं है क्या? छत्तीसगढ़ की मानसिक दिवालिएपन की शिकार सरकार ने आसाराम की सलाह पर सरकारी तौर पर 14 फ़रवरी को “मातृ-पितृ पूजन दिवस” घोषित किया हुआ है, यह शायद सरकार को नहीं मालूम कि सरकार का काम जनता पर त्यौहार थोपना नहीं है। खैर…
अब हिन्दू महासभा का कहना है कि वह 14 फ़रवरी को साथ घूमने वाले जोड़ों का जबरन विवाह करवाएगी! ऐसी शर्मनाक हरकत की संवैधानिकता पूछना गोडसे-सावरकर के वंशजों पर अत्याचार ही होगा। फिर भी कुछ सवाल तो पूछने ही होंगे। हिन्दू महासभा को कैसे मालूम कि 14 फ़रवरी को साथ घूम रहे लड़का-लड़की प्रेमी युगल ही हैं और आपस में शादी करना चाहते हैं? यह भी तो हो सकता है कि वे कुछ साल बाद शादी करना चाहते हों या नहीं ही करना चाहें? हिन्दू महासभा तब क्या करेगी जब प्रेमी युगल में लड़का दलित और लड़की ब्राह्मण हो? विजातीय विवाह किस प्रकार सम्पन्न होगा? विवाह के बाद जोड़े के रहने आदि की व्यवस्था कौन करेगा? हिन्दू महासभा का कहना है कि यदि युगल में कोई एक गैर हिन्दू हुआ तो उसे हिन्दू धर्म स्वीकार करवाकर विवाह करवा दिया जाएगा। मान लो कि लड़का मुसलमान है और लड़की हिन्दू, यदि लड़का शादी के नाम पर हिन्दू बनने को राजी हो भी जाए तो हिन्दू महासभा यह कैसे तय करेगी कि उस नवहिंदू का वर्ण क्या होगा, जाति क्या होगी? गोत्र क्या होगी?
मोहब्बत के दुश्मन सड़कों पर खौफ़ मचाने को बेताब हैं। 14 फरवरी को सुबह-सुबह अपने माता-पिता का पूजन कर वे घरों से निकलेंगे प्रेमी जोड़ों (या सिर्फ जोड़ों) के मौलिक अधिकारों का हनन करने। यह भूलकर कि इस दुनिया में मोहब्बत न होती तो न वे होते न ही उनके माता-पिता का कोई अस्तित्व होता।
-हितेन्द्र अनंत
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