कहानी (Story), व्यंग्य (Satire)

दुर्गा-शक्ति-नागपाल (लघुकथा)

सुबह आठ बजे का समय। मुख्यमंत्री निवास के बाग में खद्दर का कुर्ता-पायजामा पहने मुख्यमंत्री दुर्गाप्रसाद चाय पी रहे थे। सामने टेबल पर कुछ बिस्किट और भुने हुए नमकीन काजू रखे हुए थे। इतने में सिलेटी रंग की सफ़ारी पहने हुए उनकेनिजी सचिव अखिलेश और पैंतीस वर्षीय एक गोरा-चिट्टा युवक जिसने सफ़ेद कमीज, गहरी नीली पतलून और टाई लगा रखी थी, मुख्यमंत्री के निकट आए। अखिलेश ने तत्काल झुककर दुर्गाप्रसाद के चरण स्पर्श किये। युवक ने “गुडमॉर्निंग सर” किया। सफ़ेद कमीज और पतलून पहने एक भृत्य ने टेबल पर चाय के दो कप और रखे। बात आगे बढ़ी।

दुर्गा: “हाँ क्या है पिछले महीने का डाटा भाई?” “क्या प्रगति है?”

अखिलेश: “जी भैया, ये शक्ति हैं। वो पीआर फर्म का सोशल मीडिया प्रभाग है न  भैया, यही संभालते हैं आजकल”।

शक्ति: “सर यदि आदेश हो तो ये फाईल लाया हूँ, कृपया एक नजर आप देख लें।”

दुर्गा: “देखा है, कल आपके सीईओ हैं ना उनका ईमेल आया था हमें, वही फाईल है ना ये?”

अखिलेश: “जी भैया! वही फाईल है। वो हमने सोचा बाबूजी भी होंगे यहाँ तो प्रिंट करके ले आये”

दुर्गा: “बाबूजी तो बैंगलोर हैं। वो नवीन का प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र है ना! बहुत दिनों से कह रहा था वो, भेज दो बाबूजी को!”

अखिलेश: “जी भैया!”

शक्ति: “सर पिछले मंथ में अपनी प्रोग्रेस टेन परसेंट डाउन है सर! ट्वीटर तो बैडली हिट है। फेसबुक पे लाइक्स में ग्रोथ भी स्लो है सर।”

दुर्गा: “हूँ। फिर क्या बोलते हैं आपके सीईओ?”

शक्ति: “सर! वो पाणिग्रहि सर बोल रहे थे कि इस महीने एक कॅम्यूनल कंट्रोवर्सी होनी चाहिये। इश्यू अभी ऐसा चाहिये सर कि अपनी कोर कन्सट्वीट्वेंसी जो है सर, उसको टारगेट करना होगा सर। अभी ना सर हम अपनी स्ट्रेंथ पर ही फोकस करें तो ठीक रहेगा सर।  साथ में इसमें थोड़ा मिडिल क्लास टच भी होना चाहिये सर”

दुर्गा: “हूँ।”

अखिलेश: “जी भैया!”

शक्ति: “सर तो जो गाजियाबाद का इश्यू चल रहा है न सर, वो डिमोलिशन वाला, उसी का प्लान भेजा है सर ये!”

दुर्गा: “अखिलेश!”

अखिलेश: “जी भैया!”

दुर्गा: “नागपाल से कहो कि देखे उस मॉस्क का। वो बात हो गयी है। बाहर की जो कंपाउंड वाल है ना, उसपे बस थोड़ा सा कार्यवाही करनी है एक-दो घंटे की। खान अंकल से भी बात कर लो।”

अखिलेश: “जी भैया वो ऐसा है कि, खान साब से तो बात हो गयी है। वो तो मैनेज कर लेंगे मस्जिद का। लेकिन वो नागपाल अभी सर नया आईएएस है। वो थोड़ा सा, मतलब तैयार तो है, पर थोड़ा सा संकोच में लग रहा था सर!”

दुर्गा: “कहाँ जाना है उसको?”

अखिलेश: “जी भैया, वो बोल रहा था भैया, कि उसको एक महीने से ज्यादा का निलंबन नहीं चाहिये, और उसके बाद लखनऊ माँग रहा है वो भैया!”

दुर्गा: “ठीक है कर दो! कार्मिक विभाग में कह दो आप कि ये ऐसा करना है। लेकिन उससे कहो नागपाल से कि केवल बाहर की दीवार को छुए, जोश में कहीं अंदर न चला जाए हीरो बनने के चक्कर में!”

अखिलेश: “जी भैया!”

दुर्गा (शक्ति से): “आगे का आप देख लेंगे, पाणिग्रहि साहब से बात कर लीजिये।”

शक्ति: “जी सर, बस न्यूज चाहिये सर इश्यू की, अच्छा कवरेज, बाकी तो सोशल मीडिया पर पब्लिक तो अपने आप पुल कर लेगी सर! ट्वीटर पर हेवीली ट्रेंड भी हो जाएगा! फेसबुक का हम लोग देख लेंगे सर। दस हजार तो हमारे अकाउंट है सर, ऑल टाईम एक्टिव!”

अखिलेश: “रिजल्ट दिखना चाहिये!”

शक्ति: “जी सर!”

दुर्गा: “अखिलेश, बात कराओ नागपाल से”

अखिलेश: “जी भैया!”

प्लेट पर रखे भुने काजू उठा लिये गये। मुख्यमंत्री का काफ़िला मंत्रालय की ओर रवाना हुआ। अगले दिन सुबह प्लेट पर वही भुने हुए काजू थे, साथ में रखे अनेक अखबारों में से एक पर समाचार  था: “युवा आईएएस अफसर नागपाल निलंबित! धर्म विशेष के पूजा स्थल पर अतिक्रमण की कार्यवाही से मुख्यमंत्री सख़्त नाराज। जिले की जनता में रोष। विपक्ष का आरोप, तुष्टिकरण के लिये की गई ईमानदार अफसर पर कार्यवाही”

दुर्गाप्रसाद अपने टैबलेट पर फेसबुक की हलचल देख रहे थे। हर जगह नागपाल के चर्चे थे। मस्जिद की बाहरी  दीवार मस्जिद है या नहीं इस पर बहसें जारी थीं।  ट्वीटर पर भी हिंदू-मुस्लिम युद्ध जारी था। नागपाल हर जगह हीरो बन चुका था। दुर्गाप्रसाद ने टैबलेट रखा और बाबूजी को फोन लगाया।

“प्रणाम बाबूजी! हाँ वो ठीक रहा कल का नागपाल वाला! आप तो बस आराम कीजिये…अच्छा बाबूजी चलता हूँ। आज झाँसी में लैपटॉप और टैबलेट वितरण का कार्यक्रम है।”

अचानक हल्की बारिश शुरू हुई, अखिलेश ने फौरन दुर्गाप्रसाद के लिये छतरी तान दी। दोनों झांसी की ओर रवाना हुए। प्लेट पर रखे भुने नमकीन काजू भीग गये थे। नमक भीगकर अब सफ़ेद प्लेट पर फैल चुका था। फिर धूप आई तो काजू का सारा नमक वाष्प बनकर उड़ गया। फेसबुक और ट्वीटर फिर और भी नमकीन हो गये।

-हितेन्द्र अनंत

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4 विचार “दुर्गा-शक्ति-नागपाल (लघुकथा)&rdquo पर;

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