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विज्ञान प्रसार का हिन्दी जालस्थल

भारत सरकार के द्वारा 1989 में स्थापित संस्था “विज्ञान प्रसार” का कार्य विज्ञान को आम लोगों विशेषकर बच्चों में लोकप्रिय बनाना है। विज्ञान प्रसार की हिन्दी पत्रिका “विज्ञान प्रगति” जिन्होंने पढ़ी होगी वे अवश्य इससे परिचित होंगे। किंतु वि.प्र. के जालस्थल में अनेक कमियाँ भी दिखायी देती हैं। ऐसा अकसर होता है कि सरकार के हिन्दी को बढ़ावा देने के उपक्रम मूलतः प्रतीकात्मक रह जाते हैं। यही कारण है इस जाल-स्थल पर अधिकांश सामग्री अंग्रेजी में है और केवल बाहरी लिंक हिन्दी में हैं। यद्यपि प्रयास सराहनीय है। किंतु अच्छा होता यदि अंदर की सामग्री भी हिन्दी में होती।

 भाषा के प्रश्न को छोड़ दें तो यदि आप विज्ञान में रूचि रखते हैं या अपने घर परिवार के बच्चों को विज्ञान की सरल-सुलभ जानकारी देना चाहते हैं तो एक बार इस जाल-स्थल पर अवश्य जाएँ।

विज्ञान प्रसार के जाल-स्थल पर जाने के लिये यहाँ क्लिक करें।

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मानक

6 विचार “विज्ञान प्रसार का हिन्दी जालस्थल&rdquo पर;

  1. अनुनाद कहते हैं:

    ज्ञान-विज्ञान के प्रसार के लिये पहली आवश्यक शर्त है कि वह(ज्ञान) आम जनता की भाषा में हो। अस्तु, विज्ञान प्रसार को अपने उद्देश्य में सफल होने के लिये हिन्दी में अधिकाधिक सामग्री उपलब्ध करानी चाहिये।

  2. इस पत्रिका के जीवनी वाले विभाग में जाकर वैज्ञानिकों की की जीवनी पढिये किस तरह की घटिया भाषा का उपयोग किया हुआ है। उदाहरण देखिये ये जगदीश चन्द्र बोस के लिये लिखे लेख में किन शब्दों का प्रयोग हुआ है-

    बोस अपनी छुट्टियां सुरम्‍य सुन्‍दर एतिहासिक स्‍थानों की यात्रा करने और चित्र लेने में बिताता था और पूर्ण-साइज़ कैमरा से सुस‍‍ज्जित रहता था। अपने कुछ अनुभवों को उसने सुन्‍दर बंगाली गद्य में लिपिबद्ध किया।
    अपने पिता के उदाहरण का अनुसरण करते हुए उसके सामने सहज विकल्प प्रसिद्ध भारतीय सिविल सेवा में भरती होना था। तथापि उसका बाप नहीं चाहता था कि वह सरकारी नौकर बने जिसके बारे में उसने सोचा कि उसका बेटा आम जनता से परे चला जाएगा।
    इसके फलस्वरूप उसकी नियुक्ति को पूर्वव्याप्ति से स्थायी बना दिया। उसे गत तीन वर्ष का वेतन एकमुश्त दे दिया गया जिसका इस्तेमाल उसने अपने बाप का ऋण उतारने के लिए किया।

    इस के बारे में मैने पहले भी जुगाड़ वाली पोस्ट में लिखा है। देखिये

    भारत सरकार के इस जाल स्थल में डॉ ए पी जे कलाम के लिये शब्दों का प्रयोग देखिये, मानों यह लेख एक देश के राष्ट्र्पति के बारे नहीं किसी ऐरे गैरे इन्सान के लिये लिखा गया हो। इस लेख को तो पढ़ा भी नहीं जाता
    http://nahar.wordpress.com/2006/10/26/abtakkejugad/

  3. विज्ञान प्रसार में एपीजे अब्दुल कलाम साहब के बारे में पढ़्कर दिल रोने को करता है। हिन्दी की ऐसी दुर्गति तो दश्मनों के देश में भी नहीं हुई होगी। विज्ञान प्रसार को मैं इस बारे में पत्र लिख रहा हूँ। इस अपमान को ऐसे ही नहीं जाने दिया जाएगा।

  4. जब अज्ञानी लोग देखादेखी कोई कार्य करते हैं तब ऐसा ही कबाड़ा होता हैं. यह सरकारी (जनता के) पैसे से ठेका प्रणाली के तहत बनी साइट हैं, इससे आप गुणवत्ता की आशा करेंगे तो दोष आपका ही होगा.
    आप शिकायत का पत्र भेजना चाहते हैं, पता नहीं उसे किस फाइल में रखा जाएगा, फिर कहीं दब जाएगा. साइट बना कर जिसे जितना पैसा बनाना था बना लिया.

  5. मैँ विज्ञान प्रगति का नियमित पाठक रह चुका हूँ प्लीज मुझे कोई मेल भेज कर जानकारी देँ कि laser range finder उपकरण (गैजेट) से दो स्थानोँ की दूरी कैसे पता करते हैँ?क्या यह दूरी हम डिजिटल अँकोँ मेँ गैजेट की स्क्रीन पर पढ़ सकते हैँ? कोई प्लीज मुझे यह जानकारी दे मैँ सदा आभारी रहूँगा(प्रभाकर विश्वकर्मा ps50236@gmail.com मोबाइल 08896968727

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